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________________ ऐसे युवक भी हो सकते हैं जिनके व्यक्तित्व की दिशा ऐसी है कि वे संसार में नहीं जाना चाहते, तो उन्हें भेजना आवश्यक नहीं है। ढेरों लोग हैं जिनके पिछले जन्मों की यात्रा उस जगह उन्हें ले आई है कि उनके लिए विवाह का कोई अर्थ नहीं होगा। उनके लिए अब जगत में बहुत अर्थ नहीं होगा। अगर ऐसे लोग हैं तो उनको जबरदस्ती जगत में डालना वैसा ही पागलपन है जैसे किसी आदमी को, जिसे अभी विवाह करना था, उसे जबरदस्ती दीक्षा दे देना पागलपन है। ___ नहीं, जिनकी जिंदगी में सहज ही सुगंध है, और जो छोड़कर इस घेरे के बाहर जीना चाहते हैं, वे जरूर आश्रमों में जीयें, पर उनके आश्रम प्रॉडक्टिव होने चाहिए। वहां वे खेती भी करें, बगीचे भी लगायें, फैक्टरी भी चलायें, स्कूल भी चलायें, अस्पताल भी चलायें, वे वहां पैदा भी करें, और उस पैदावार पर ही जीयें। ये तीन दिशाएं हैं। और जो लोग इन तीनों में से कुछ भी नहीं कर सकते, वे भी इतना तो कर सकते हैं कि वर्ष में पंद्रह दिन हॉली-डे पर चले जायें। अंग्रेजी का यह हॉली-डे शब्द बहुत अच्छा है। हॉली-डे का मतलब छुट्टी नहीं होता, हॉली-डे का मतलब होता है, पवित्र दिन। यह जो रविवार है वह अंग्रेजों के लिए, पश्चिम में हॉली-डे है, पवित्र दिन है, क्योंकि उस दिन परमात्मा ने भी काम छोड़ दिया था दुनिया बनाकर। उस दिन उसने आराम किया था। छह दिन उसने दुनिया बनायी, सातवें दिन वह भी संन्यासी हो गया। उसने सातवें दिन आराम किया। जो छह दिन काम कर रहे हैं, सातवें दिन उनको भी आराम चाहिए। जो साल भर काम कर रहे हैं, वे कभी महीने भर के लिए हॉली-डे पर चले जायें, पवित्र दिनों में चले जाएं। छोड़ दें, भूल जायें इस दुनिया को। एक महीने के लिए डूब जायें किसी और यात्रा में, एक महीने संन्यासी की तरह किसी आश्रम में जीकर लौटें। तब आप दूसरे आदमी होकर लौटेंगे, आप कुछ आत्मिक होकर लौटेंगे, आंतरिक होकर लौटेंगे। दुनिया यही होगी लेकिन आपका दृष्टिकोण बदला हुआ होगा। मेरे लिए संन्यास का ऐसा अर्थ है। और यह व्यक्तिगत निर्णय और चुनाव है। और अगर ऐसा संन्यास पृथ्वी पर फैलाया जा सके तो हम पृथ्वी से संन्यास को मिटने से रोक सकते हैं, अन्यथा बहुत कठिन मामला है कि संन्यास बच सके। साम्यवाद जितने जोर से फैलेगा, संन्यास की हत्या उतनी ही व्यवस्था से होती चली जाएगी। ___आज चीन में, जहां कल बुद्ध की प्रतिमा रखी थी, वह प्रतिमा तो फोड़ डाली गई और माओ का फोटो लटका दिया गया है। आज चीन के स्कूलों में दीवालों पर जो वचन लिखें हैं, वे बहुत हैरानी के हैं। चीन में एक स्कूल की दीवाल पर लिखा हुआ है कि जो बच्चा माओ की किताब एक दिन नहीं पढ़ता उसकी भूख मर जाती है, जो बच्चा माओ की किताब दो दिन नहीं पढ़ता उसकी नींद चली जाती है, जो बच्चा माओ की किताब तीन दिन नहीं पढ़ता वह बीमार पड़ जाता है, जो बच्चा माओ की किताब चार दिन नहीं पढ़ता उसकी जिंदगी अंधकारपूर्ण हो जाती है। माओ की किताब में ऐसा कुछ भी नहीं है कि कोई भी बच्चा दुनिया में कहीं भी उसे पढ़े, लेकिन स्कूल के बच्चों को समझाया जा रहा है। 216 ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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