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________________ अंकुर नहीं फूट सकेंगे। यह पति नहीं मर रहा है, उसके हृदय का एक कोना ही मर रहा है। पत्नी इनवाल्व है, वह पूरी की पूरी इस दृश्य के भीतर है। इस पति और इस पत्नी के बीच फासला बहुत ही कम है। डॉक्टर के लिए भीतर कोई भी नहीं मर रहा है, बाहर कोई मर रहा है। लेकिन डॉक्टर भी उदास है, दुखी है। क्योंकि जिसे बचाना था, उसे वह बचा नहीं सका है। पत्नी के लिए हृदय में कुछ मर रहा है, डॉक्टर के लिए बुद्धि में कुछ मरने की क्रिया हो रही है। वह यह सोच रहा है कि और दवाएं दे सकता था तो क्या वह बच सकता था? क्या इंजेक्शन जो दिये थे, वे ठीक नहीं थे? क्या मेरी डाइग्नोसिस में कहीं कोई भूल हो गई है ? निदान कहीं चूक गया है? अब दुबारा कोई मरीज इस बीमारी से मरता होगा तो मुझे क्या करना है ? डॉक्टर के हृदय से इस मरीज के मरने का कोई भी संबंध नहीं है, पर उसके मस्तिष्क में जरूर बहुत कुछ चल रहा है। पत्रकार का मस्तिष्क तो इतना भी नहीं चल रहा है । वह बार-बार घड़ी देख रहा है यह आदमी मर जाये तो टाइम नोट कर ले और दफ्तर में जाकर खबर कर दे। उसके मस्तिष्क में भी कुछ नहीं चल रहा है। वह एक काम कर रहा है। बाहर खड़ा है दूर, लेकिन थोड़ा-सा संबंध है उसका। वह सिर्फ इतना सा संबंध है उसका कि इस आदमी के मरने की खबर दे देनी है जाकर । और वह खबर देकर किसी होटल में बैठकर चाय पीयेगा या खबर देकर किसी थियेटर में जाकर फिल्म देखेगा। बात समाप्त हो जायेगी। इस आदमी को उससे इतना संबंध है कि यह कब मरता है ? किस वक्त मरता है? वह मरने की प्रतीक्षा कर रहा है। चित्रकार के लिए आदमी मर रहा है, नहीं मर रहा है, इससे कोई संबंध ही नहीं है। वह उस आदमी के चेहरे पर आ गई कालिमा का अध्ययन कर रहा है। उस आदमी के चेहरे पर मृत्यु के क्षण में जीवन की जो अंतिम ज्योति झलकेगी, उसे देख रहा है। वह कमरे में घिरते हुए अंधेरे को देख रहा है। चारों तरफ से मौत के साये ने उस कमरे को पकड़ लिया है, वह उसे देख रहा है। उसके लिए आदमी के मरने की वह घटना रंगों का एक खेल है। वह रंगों को पकड़ रहा है, क्योंकि उसे मृत्यु का एक चित्र बनाना है। वह आदमी बिलकुल आउटसाइडर है। उसे कोई भी लेना-देना नहीं है । यह आदमी मरे, कि दूसरा आदमी मरे, कि तीसरा आदमी मरे, इसे कोई फर्क नहीं पड़ता है। वह पत्नी मरे, वह डॉक्टर मरे, वह पत्रकार मरे, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है। ए बी सी डी कोई भी मरे, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है। उसे मृत्यु का रंगों में क्या रूप है, वह उसे पकड़ने में लगा है। मृत्यु से उसका कोई भी संबंध नहीं है। परिस्थिति एक है, लेकिन मनःस्थिति चार हैं। चार हजार भी हो सकती हैं। जीवन वही है संसारी का भी, संन्यासी का भी, मनःस्थिति भिन्न है । वही सब घटेगा जो घट रहा है। वही दुकान चलेगी, वही पत्नी होगी, वही बेटे होंगे, वही पति होगा, लेकिन संन्यासी की मनःस्थिति और है। वह जिंदगी को किन्हीं और दृष्टिकोणों से देखने की कोशिश कर रहा है। संसारी की मनःस्थिति और है। Jain Education International For Personal & Private Use Only संन्यास (प्रश्नोत्तर) 209 www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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