________________
बचाना तो अत्यंत जरूरी है। वह जीवन की गहरी से गहरी सुगंध है। वह जीवन का बड़े से बड़ा सत्य है। तो उसे संसार से जोड़ना जरूरी है। अब संन्यासी संसार के बाहर नहीं जी सकेगा। अब उसे संसार के बीच, बाजार में, दुकान में, दफ्तर में जीना होगा, तो ही वह बच सकता है। अब संन्यासी अनप्रॉडक्टिव होकर, अनुत्पादक होकर नहीं जी सकेगा। अब उसे जीवन की उत्पादकता में भागीदार होना पड़ेगा। अब संन्यासी दूसरे पर निर्भर होकर नहीं जी सकेगा। अब उसे स्वनिर्भर ही होना पड़ेगा।
फिर मुझे समझ में भी नहीं आता कि कोई जरूरत भी नहीं है कि आदमी संसार को छोड़कर भाग जाये, तभी संन्यास उसके जीवन में फल सके। अनिवार्य भी नहीं है। सच तो यह है कि जहां जीवन की सघनता है, वहीं संन्यास की कसौटी भी है। जहां जीवन घना संघर्ष है, वहीं संन्यास के साक्षीभाव का आनंद भी है। जहां जीवन अपनी सारी दुर्गंधों में है, वहीं संन्यास का जब फूल खिले, तभी उसकी सुगंध की परीक्षा भी है। और संसार में बड़ी ही आसानी से संन्यास का फूल खिल सकता है। एक बार हमें खयाल आ जाये कि संन्यास क्या है तो घर से, परिवार से, पत्नी से, बच्चे से, दुकान से, दफ्तर से भागने की कोई भी जरूरत नहीं रह जाती। और जो संन्यास भागकर ही बच सकता है, वह बहुत कमजोर संन्यास है। वैसा संन्यास अब आगे नहीं बच सकेगा। अब हिम्मतवर करेजियस. साहसी सं की जरूरत है। जो जिंदगी के बीच खड़ा होकर संन्यासी है।
जहां है व्यक्ति, वहीं रूपांतरित हो सकता है। रूपांतरण परिस्थिति का नहीं है, रूपांतरण मनःस्थिति का है। रूपांतरण बाहर का नहीं है, रूपांतरण भीतर का है। रूपांतरण संबंधों का नहीं है, रूपांतरण उस व्यक्तित्व का है जो संबंधित होता है।
__ आरतेगावायगासिट ने एक छोटी-सी घटना लिखी है। लिखा है कि एक घर में एक व्यक्ति मरणासन्न पड़ा है, मर रहा है, उसकी पत्नी छाती पीटकर रो रही है। पास में डॉक्टर खड़ा है। आदमी प्रतिष्ठित है, सम्मानित है। अखबार का रिपोर्टर आकर खड़ा है-मरने की खबर अखबार में देने के लिए। रिपोर्टर के साथ अखबार का एक चित्रकार भी आ गया है। वह आदमी को मरते हुए देखना चाहता है। उसे मृत्यु की एक पेंटिंग बनानी है, चित्र बनाना है। पत्नी छाती पीटकर रो रही है। डॉक्टर खड़ा हुआ उदास मालूम पड़ रहा है, हारा हुआ, पराजित। प्रोफेसनल हार हो गई है उसकी। जिसे बचाना था उसे नहीं बचा पा रहा है। पत्रकार अपनी डायरी पर कलम लिए खड़ा है कि जैसे ही वह मरे, टाइम लिख ले और दफ्तर भागे। चित्रकार खड़ा होकर गौर से देख रहा है।
एक ही घटना घट रही है उस कमरे में, एक आदमी का मरना हो रहा है। लेकिन पत्नी को, डॉक्टर को, पत्रकार को, चित्रकार को एक घटना नहीं घट रही है, चार घटनाएं घट रही हैं। पत्नी के लिए सिर्फ कोई मर रहा है ऐसा नहीं है, पत्नी खुद भी मर रही है। यह पत्नी के लिए कोई दृश्य नहीं है जो बाहर घटित हो रहा है। वह उसके प्राणों के प्राणों में घटित हो रहा है। यह कोई और नहीं मर रहा है, वह स्वयं मर रही है। अब वह दुबारा वही नहीं हो सकेगी जो इस पति के साथ थी। उसका कुछ मर ही जाएगा सदा के लिए, जिसमें शायद फिर कभी
ong
ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org