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________________ कोई सत्य भी हो सकता है, इसकी हमें कल्पना भी नहीं उठती । मैंने सुना है, एक फ्रेंच उपन्यासकार बालजक के पास कोई व्यक्ति मिलने गया था। | तो वह बालक से उसके उपन्यास के पात्रों के संबंध में बात कर रहा था। फिर बात उपन्यास के पात्रों पर चलते-चलते धीरे-धीरे राजनीतिक नेताओं पर और देश की राजनीति पर चली गई। थोड़ी देर तक बालजक बात करता रहा और फिर उसने कहा, माफ कीजिए, लेट अस कम बैक टु द रियलिटी अगेन, अब हमें असली बातों पर फिर वापस लौट आना चाहिए। और बालक ने अपने उपन्यास के पात्रों की बात फिर से शुरू कर दी । बालजक के लिए उसके उपन्यास के पात्र रियलिटी हैं, यथार्थ हैं । और जिंदगी के मंच पर सच में जो पात्र खड़े हैं, वे अयथार्थ हैं। बालजक ने कहा, छोड़ें अयथार्थ बातों को, हमें अपनी यथार्थ बातों पर फिर से वापस लौट आना चाहिए। बालजक उपन्यासकार है। उसके लिए उपन्यास के पात्र सत्य मालूम होते हैं, जीवंत व्यक्तियों से भी ज्यादा । हम जिस संसार में इतने डूबे खड़े हैं, वहां हमें संसार के अतिरिक्त और कुछ भी सत्य दिखाई नहीं पड़ता है। यद्यपि जिन्होंने भी आंखें ऊपर उठाकर देखा है, उन्हें आंखें ऊपर उठाते ही संसार एक अयथार्थ जाता है, एक अनरियलिटी हो जाता है। संन्यास का अर्थ है, संसार के ऊपर आंख उठाना। संसार सब-कुछ नहीं है, उसके पार भी कुछ है। उसकी तरफ खोज में गई आंखों का नाम संन्यास है। यह संन्यास...कुछ बातें आपसे कहूं तो स्पष्ट हो सके ! ऐसे संन्यास करीब-करीब पृथ्वी से विदा होने के करीब है । क्योंकि अब तक संन्यासी संसार से टूट कर जीया है। और अब भविष्य में ऐसे संन्यास की कोई भी संभावना बाकी नहीं रह जायेगी, जो संसार से टूट कर जी सके। इसलिए रूस से संन्यासी विदा हो गया, चीन से संन्यासी विदा किया जा रहा है। आधी दुनिया संन्यासी से खाली हो गई है। शेष आधी दुनिया कितने दिन तक संन्यासी के साथ रहेगी, कहना मुश्किल है। इस पूरी पृथ्वी पर यह हमारी सदी शायद संन्यास की अंतिम सदी होगी, यदि संन्यास को नये अर्थ, नये डाइमेंशन और नये आयाम न दिए जा सके। यह संन्यास विदा क्यों हो रहा है? संसार से तोड़कर जिस चीज को हमने अब तक बचा रखा था, वह हॉट हाउस प्लांट था, वह संसार के धक्कों को अब नहीं सह पा रहा है । और जिस समाज ने संन्यासी को संसार से तोड़कर जिंदा रखा था, वह समाज भी मिटने के करीब आ गया है। तो अब उस समाज के द्वारा निर्मित संन्यास की व्यवस्था और संस्था भी बच नहीं सकती। जब समाज ही पूरा रूपांतरित होता है, तो उसकी सारी विधाएं, उसके सारे आयाम टूट जाते हैं। जिस समाज में राजा थे, महाराजा थे, वह समाज मिट गया, राजेमहाराजे मिट गए। राजे-महाराजे के साथ उस समाज के दरबार में पाला हुआ कवि मिट गया। जो समाज कल तक था, जिसने संन्यासी को पाला था, वह समाज विदा हो रहा है। वह समाज बचने वाला नहीं है, संन्यासी भी बच नहीं सकेगा, यदि संन्यासी भी नये रूप को स्वीकार न कर सके । तो एक बात जो मेरी दृष्टि में बहुत महत्वपूर्ण मालूम पड़ती है, वह यह कि संन्यास को संन्यास (प्रश्नोत्तर) Jain Education International For Personal & Private Use Only 207 www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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