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कई प्रेमियों ने अपनी प्रेयसियों की गर्दन दबा डाली है प्रेम के क्षणों में, मार ही डाला है! उन पर मुकदमे चले हैं। अदालतें नहीं समझ पायीं कि यह कैसा प्रेम है ? लेकिन अदालतों को समझना चाहिए, यह थोड़ा आगे बढ़ गया प्रेम है! यह संबंध जरा घनिष्ठ हो गया। वैसे सभी प्रेमी एक-दूसरे की गर्दन दबाते हैं। कोई हाथ से दबाता है, कोई मन से दबाता है, कोई
और-और तरकीबों से दबाता है। लेकिन प्रेमी को दबाना हमारा ढंग रहा है। कम-ज्यादा की बात दूसरी है।
दो शरीरों के बीच में जो संबंध है, वह चाहे छुरा मारने का हो और चाहे चुंबन का और आलिंगन का हो, उसमें बुनियादी फर्क नहीं है। उसमें मूलतः फर्क नहीं है। यह जान कर आपको हैरानी होगी कि दूसरे के शरीर में छुरा भोंकने में कुछ लोगों को जो आनंद आता है, क्या कभी आपने खयाल किया कि उसका खयाल सेक्सुअल पेनिट्रेशन से ही पैदा हुआ है? दूसरे के शरीर में छुरा भोंकने का जो रस है, या दूसरे के शरीर को गोली मार देने का जो रस है, क्या वह यौन-परवर्शन से ही पैदा नहीं हुआ है?
असल में यौन का सुख भी, दूसरे के शरीर में प्रवेश का सुख है। अगर किसी आदमी का दिमाग थोड़ा विकृत हो गया तो वह प्रवेश के दूसरे रास्ते खोज सकता है। विकृत कहें या इन्वेन्टिव कहें, आविष्कारक हो गया। वह कह सकता है कि दूसरे के शरीर में यौन की दृष्टि से प्रवेश तो जानवर भी करते हैं, इसमें आदमी की क्या खूबी? आदमी और भी तरकीबें खोजता है जिनसे वह दूसरे के शरीर में प्रवेश कर जाये। जो गहरे में खोजते हैं वे कहते हैं कि दूसरे की हत्या का सुख परवर्टेड सेक्स है। वे कहते हैं कि दूसरे को मार डालने का रस, दूसरे में प्रवेश का रस है। ____ कभी-कभी छोटे बच्चे, आपने खयाल किया, अगर चलता हुआ कीड़ा देखते हैं तो तोड़ कर देखेंगे; फूल मिलेगा तो उसको फाड़कर देखेंगे। क्या आप सोच सकते हैं कि किसी आदमी को दूसरे आदमी को फाड़कर देखने में वही जिज्ञासा काम कर रही है? क्या आप कह सकते हैं कि विज्ञान भी बहुत गहरे में वायलेंस है? चीजों को फाड़कर देखने की चेष्टा है। लेकिन स्वीकृत है। अगर आप मेढक को मार रहे हैं बाहर, तो लोग कहेंगे, बुरा कर रहे हैं। लेकिन लेबोरेट्री के टेबल पर मेढक को काट रहे हैं तो कोई बुरा नहीं कहेगा। लेकिन हो सकता है यह काटनेवाला जो रस ले रहा है, वह वही रस है। __अभी बहुत देर है कि हम वैज्ञानिक के चित्त को ठीक से समझ पायें, अन्यथा हमें पता चलेगा कि उसने अपनी हिंसा की वृत्ति को वैज्ञानिक रुख दे दिया है, जो स्वीकृत रुख है।
और हम हिंसा की वृत्ति को बहुत से रुख दे सकते हैं। कभी हमने यज्ञ का रुख दे दिया था, वह रिलीजियस ढंग था हिंसा का।।
किसी आदमी को किसी जानवर को काटना है। काटने में बुराई है, पाप है तो फिर काटने को पुण्य बना लिया जाये। तो हम यज्ञ में काटें, देवता की वेदी पर काटें, तो पुण्य हो जायेगा। काटने का मजा लेना है।
लेकिन अब वह पागलपन हो गया। अब हम जानते हैं कि देवता की कोई वेदी नहीं है;
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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