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________________ मतलब मेरे शरीर से होता है तो आपसे मतलब सिर्फ आपके शरीर से होता है। न आपकी चेतना से मुझे कोई प्रयोजन है, न मुझे आपकी चेतना का कोई पता है। जिसे अपनी चेतना का पता नहीं, उसे दूसरे की चेतना का पता हो भी कैसे सकता है? ____ मुझे मेरे शरीर का पता है और आपके शरीर का पता है। अगर ठीक से कहें तो हिंसा दो शरीरों के बीच का संबंध है-रिलेशनशिप बिटवीन टू बॉडीज। और दो शरीरों के बीच अहिंसा का कोई संबंध नहीं हो सकता। शरीरों के बीच संबंध सदा हिंसा का होगा। अच्छी हिंसा का हो सकता है, बुरी हिंसा का हो सकता है; खतरनाक हिंसा का हो सकता है, गैरखतरनाक हिंसा का हो सकता है। लेकिन तय करना मुश्किल है कि खतरा कब गैर-खतरा हो जाता है, गैर-खतरा कब खतरा बन जाता है। एक आदमी प्रेम से किसी को छाती से दबा रहा है। बिलकुल गैर-खतरनाक हिंसा है। असल में दूसरे के शरीर को दबाने का सुख ले रहा है। लेकिन और थोड़ा बढ़ जाये, और जोर से दबाये तो घबड़ाहट शुरू हो जायेगी। छोड़े ही ना, और जोर से दबाये और श्वास घुटने लगे, तो जो प्रेम था वह तत्काल घृणा बन जायेगा, हिंसा बन जायेगा। ऐसे प्रेमी हैं जिनको हम सैडिस्ट कहते हैं, जिनको हम परपीड़क कहते हैं। वे जब तक दूसरे को सता न लें तब तक उनका प्रेम पूरा नहीं होता। वैसे हम सब प्रेम में एक-दूसरे को थोडा सताते हैं। जिसको हम चंबन कहते हैं. वह सताने का एक ढंग है। लेकिन धीमा, माइल्ड। हिंसा उसमें पूरी है लेकिन बहुत धीमी। लेकिन थोड़ा और बढ़ जाये, काटना शुरू हो जाये, तो हिंसा थोड़ी बढ़ी। कुछ प्रेमी काटते भी हैं। लेकिन तब तक भी चलेगा, लेकिन फिर फाड़ना-चीरना शुरू हो जाये...जिन्होंने प्रेम के शास्त्र लिखे हैं उन्होंने नख-दंश भी प्रेम की एक व्यवस्था दी है। कि नाखून से प्रेमी को दंश पहुंचाना, वह भी प्रेम है। ___ हिंदुस्तान में, हिंदुस्तान के जो कामशास्त्र के ज्ञाता हैं, वे कहते हैं : जब तक प्रेमी को नाखून से खुरेचें नहीं, तब तक उसके भीतर प्रेम ही पैदा नहीं होता। लेकिन नाखून से खुरेचना! तो फिर एक औजार लेकर खुरेचने में हर्ज क्या है? वह बढ़ सकता है! वह बढ़ जाता है! क्योंकि जब नाखून से खुरेचना रोज की आदत बन जायेगी, तब फिर रस खो जायेगा। फिर एक हथियार रखना पड़ेगा। जिस आदमी के नाम पर सैडिज्म शब्द बना, द सादे के नाम पर, वह आदमी अपने साथ एक कोड़ा भी रखता था, एक कांटा भी रखता था पांच अंगुलियों वाला, पत्थर भी रखता था, और भी प्रेम के कई साधन अपने बैग में रखता था। और जब किसी को प्रेम करता तो दरवाजा लगा कर, ताला बंद करके, बस कोड़ा निकाल लेता। पहले वह दूसरे के शरीर को पीटता। जब उसकी प्रेयसी का सारा शरीर कोड़ों से लहू-लुहान हो जाता, तब वह कांटे चुभाता।...यह सब प्रेम था। ___ आप कहेंगे, यह अपना वाला प्रेम नहीं है। बस यह सिर्फ थोड़ा आगे गया। डिफरेंस इज़ ओनली ऑफ डिग्रीज। इसमें कोई ज्यादा, कोई क्वालिटेटिव फर्क नहीं है, कोई गुणात्मक फर्क नहीं है, क्वांटिटेटिव, परिमाण का, मात्रा का फर्क है। असल में दूसरे के शरीर से हमारे जो भी संबंध हैं, वे कम या ज्यादा, हिंसा के होंगे। इससे ज्यादा कोई फर्क नहीं पड़ता। अहिंसा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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