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है। वह कहता है कि इस आदमी ने गाली दी, इसलिए मैं क्रोध कर रहा हूं। गाली उसने दी है, कसूर उसका है, दंड वह अपने को दे रहा है!
क्रोध भीतर जलाता है। कोई आग इतना नहीं जलाती, और कोई आग चमड़ी के भीतर, हड्डियों के भीतर प्रवेश नहीं करती। लेकिन क्रोध की आग आत्मा तक जला डालती है। भीतर सब जला डालती है। भीतर राख कर देती है। ___ जब एक आदमी साधारण आग में हाथ डालने से हाथ खींच लेता है तो वह आदमी क्रोध की आग में कैसे हाथ डाल पाता है? डाल पाता है इसीलिए, कि उसने कभी पूरी तरह देखा ही नहीं कि वह क्रोध में हाथ डाल रहा है। क्रोध में हाथ डालता है, दिखाता है कि हम फूलों को छू रहे हैं। भीतर घृणा में जलता है, ओंठों पर मुस्कुराहट रखता है। यह मुस्कुराहट ही देखता रहता है और अटका रहता है इस मुस्कुराहट में, और हाथ जल जाते हैं भीतर उस आग में। ___अगर कोई आदमी झूठी हंसी न हंसे और अपने प्राणों के सारे रुदन को, पीड़ा को, कष्ट को देखे, तो आज नहीं कल, यह जलती हुई आग उसे दिखाई पड़ जाती है। इस दुनिया में इतना नासमझ कोई भी नहीं है कि जो देख ले क्रोध को, देख ले घृणा को, और फिर भी उस में वह रह सके। यह असंभव है। वह उसके बाहर आ जाता है।
इसलिए जब मैंने कहा कि हम मुखौटे लगाकर चोरी करते हैं, तो मेरा मतलब यह नहीं है कि आप मुस्कुराते हैं तो मुखौटा है। मुस्कुराहट तब मुखौटा होगी, जब भीतर कोई मुस्कुराहट नहीं है, मुस्कुराहट सिर्फ ऊपर है। रोना तब मुखौटा होगा, जब आंसू भीतर बिलकल नहीं हैं. सिर्फ आंखों में आंस हैं। स्वागत करना तब मखौटा होगा. जब भीतर प्राण कह रहे हों कि यह आदमी कहां से आ गया, और बाहर से आप कह रहे हैं, अतिथि देवता हैं। आप आइए, विराजिए। तब अतिथि तो अपमानित होता ही है, देवता भी अपमानित होते हैं।
नहीं, कह दें जैसा है, वैसा ही कह दें। कठिन होगा। वह कठिनाई पैदा होनी ही चाहिए। क्योंकि कठिनाई होगी तो ही मुक्ति होगी। कठिन होगा, घर आए मेहमान से अगर कहें कि आपने बड़े संकट में डाल दिया है; देवता बिलकुल नहीं मालूम पड़ रहे हैं आप-बड़ी कठिनाई होगी, झूठा चेहरा बचाना मुश्किल हो जायेगा। लेकिन इस कठिनाई को सहने से, आज नहीं कल, अतिथि देवता मालूम पड़ सकता है। क्योंकि इतना जो सरल हो जायेगा उसे ही अतिथि देवता मालूम पड़ सकता है। जो इतना कनिंग है, जो इतना चालाक है कि भीतर कह रहा है कि यह दुष्ट कहां से आ गया, और ऊपर से कह रहा है, आप देवता हैं, विराजिए, घर में आनंद छा गया है! इस आदमी को अतिथि देवता कभी भी मालूम नहीं पड़ सकते। यह आदमी अपने साथ इतनी चालाकी कर रहा है कि यह चालाकी इसे कुटिल कर देगी, जटिल कर देगी, तिरछा कर देगी। इसका सारा व्यक्तित्व तिरछा होता चला जायेगा।
पूरी जिंदगी हम इसी तरह की कुटिलताएं इकट्ठी करते हैं और तब सब झूठा हो जाता है। धार्मिक आदमी इस बात की घोषणा है कि वह जटिलता छोड़ेगा, वह सरल होगा; जैसा
अचौर्य (प्रश्नोत्तर)
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