________________
तपश्चर्या है। धर्म की तपश्चर्या का मतलब धूप में खड़ा होना नहीं है। धर्म की तपश्चर्या का मतलब है जीवन की सब तरह की धूप में खड़े होने की हिम्मत। जब क्रोध है, तो कहें कि क्रोध है। और जब घृणा है, तो कहें कि घृणा है। कम से कम ईमानदार तो बनें। कम से कम सिंसियर तो हों। कह दें कि ऐसा है। उस पीड़ा का अनुभव करें, जीयें उसे। उस जीने में से ही गुजरने से हाथ जलेंगे। जले हुए हाथ ही कल रोकने का कारण बनते हैं। और जिस आदमी पर आपने क्रोध प्रकट किया और कहा कि क्रोध है, जिस आदमी पर आपने घृणा की और कहा कि घृणा है, कल अगर आप उस आदमी के साथ हंसेंगे और प्रेम करेंगे, तो वह समझेगा कि आपमें प्रेम भी है। अन्यथा जिसकी घृणा झूठी है, जो झूठा हंसता है, और जो झूठा रोता है, उसकी जिंदगी में बाकी सब चीजें भी संदिग्ध हो जाती हैं।
इसलिए अगर कभी किसी बाप ने अपने बेटे पर सच-सच क्रोध नहीं किया, तो ध्यान रखना बाप की क्षमा भी बेटा कभी ईमानदारी से स्वीकार नहीं कर पायेगा। वह जानता है, बाप बेईमान है; क्षमा भी पता नहीं...। अगर किसी पत्नी ने अपने पति पर कभी क्रोध नहीं किया, क्रोध को दबाया और छिपाया और मुस्कराई, तो ध्यान रखना, जब वह सच में भी कभी मुस्कुरायेगी, तब भरोसा करना बहुत मुश्किल होगा; क्योंकि ऑथेंटिक व्यक्तित्व नहीं है उसके पास। प्रामाणिक व्यक्तित्व नहीं है उसके पास। उसके प्रेम के सच्चे होने की भी संभावना रोज-रोज कम होती जायेगी।
जिसकी घृणा झूठी है, उसका प्रेम सच्चा नहीं हो सकता। जिसका क्रोध झूठा है, उसकी क्षमा सच्ची नहीं हो सकती। जिसकी मुस्कुराहट झूठी है, उसके आंसुओं का क्या भरोसा है ? जिंदगी तक सारी की सारी एक झूठ की कहानी हो जाती है।
धर्म इसके खिलाफ बगावत है। धर्म विद्रोह है। धर्म एक रिबेलियन है। धर्म इनसिंसियरिटी के खिलाफ, बेईमानी के खिलाफ ईमानदार होने की घोषणा है। वह कहता है, आंसू होंगे, तो रोयेंगे; मुस्कुराहट होगी, तो हंसेंगे। और जो आदमी इतना ईमानदार होता है, वह बहुत ज्यादा देर तक घृणा से भरा हुआ नहीं रह सकता। उसके कारण हैं। जो आदमी इतना ईमानदार है, वह बहुत दिन तक क्रोध से भरा हुआ नहीं रह सकता। उसके कारण हैं। क्योंकि ईमानदारी इतनी बड़ी घटना है, सिंसियरिटी इतनी बड़ी घटना है कि ऐसे आदमी की जिंदगी में, बेईमानी जहां समाप्त हो गई हो, जहां बेईमानी इनकार कर दी गई हो, वहां क्रोध और घृणा के कांटे लगने मुश्किल हो जाते हैं। क्योंकि बेईमानी बीज है, जिसमें सब-कुछ लगता है। अगर वह बीज ही टूट गया, तो बाकी चीजें अपने आप गिरनी शुरू हो जाती हैं।
यह सिंसियरिटी कि आदमी अपने साथ ईमानदार है, बहुत ज्यादा देर तक क्रोध को बर्दाश्त नहीं कर सकती। क्योंकि जो आदमी अपने साथ ईमानदार है, उसे आज नहीं कल यह दिखाई पड़ना शुरू हो जायेगा कि क्रोध अपने ही हाथ से अपने को ही दुख देना है।
बुद्ध ने कहीं मजाक में कहा है कि जब मैं किसी आदमी को क्रोध करते हुए देखता हूं, तो मुझे बड़ी हंसी आती है। क्योंकि वह आदमी दूसरे की भूल के लिए अपने को दंड दे रहा
198
ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org