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________________ महावीर ने भी दिया है, महावीर ने एक कोने से सत्य का एक दर्शन दिया है, बुद्ध ने किसी दूसरे कोने से वह दर्शन दिया है, मोहम्मद ने किसी तीसरे कोने से वह दर्शन दिया है, क्राइस्ट उसी की कोई चौथी खबर ले आए हैं । ये सारी की सारी संपत्तियां हमारी हैं, मनुष्य की हैं; और अगर ये सारी संपत्तियां इकट्ठी हों, और हम सब इसके वसीयतदार हों, तो दुनिया में संस्कृति पैदा होगी। अभी तो संस्कृति नहीं है, सिर्फ खंड-खंड विकृतियां हैं। और अगर यह सारी संपत्ति हमारी हो, तो दुनिया में धार्मिक चित्त पैदा होगा। अभी धार्मिक चित्त नहीं, केवल सांप्रदायिक चित्त है, सेक्टेरियन माइंड है; अभी रिलीजियस माइंड दुनिया में नहीं है। हां, कभी-कभी कोई एक आदमी धार्मिक पैदा होता है, तो उसके आस-पास तत्काल सांप्रदायिक इकट्ठे हो जाते हैं। और वह आदमी जिंदगी भर मेहनत करके जो खोज पाता है, उसके आसपास इकट्ठे लोग थोड़े ही दिनों में उसकी मेहनत नष्ट करके विकृत कर देते हैं। महावीर किसी के भी नहीं हैं, और बुद्ध किसी के भी नहीं हैं; या सबके हैं। कोई उनका मालिक नहीं है, कोई उनका दावेदार नहीं है; या फिर सब उनके दावेदार हैं। यह स्थिति बने, तो धर्म भी एक विज्ञान बन जाये । धर्म है भी विज्ञान। मेरी दृष्टि में तो परम विज्ञान है, सुप्रीम साइंस है। लेकिन अब तक बन नहीं पाया है। और धर्म अगर विज्ञान बने, तो जीवन सुसंस्कृत होगा; तो जीवन रिफाइंड होगा; तो जीवन विकसित होगा। अभी तो धर्म विकृति ही बन पाया। क्योंकि संप्रदाय ही निर्मित होते हैं और कुछ भी निर्मित नहीं होता है। कौन है जिम्मेवार ? अनुयायी जिम्मेवार हैं। अगर अनुयायी भी कहीं पहुंच गया होता यह सब उपद्रव करके, तो भी हम कहते । अनुयायी कहीं भी नहीं पहुंच पाता है। कभी पहुंचा नहीं, कभी पहुंच भी नहीं सकेगा, क्योंकि वह मौलिक सूत्र ही भूल गया है। खोजना है स्वयं को तो भीतर चलना होगा। दूसरे के पीछे जो गया, वह स्वयं को खो सकता है, पा नहीं सकता। ओशो, आपने प्याज का उदाहरण देते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति के अनेक चेहरे हैं, मुखौटे हैं— चुराये हुए। और यह मुखौटे तो होंगे, और हर हालत में होंगे। केवल भेद करना पड़ेगा सद-मुखौटों का और असदद- मुखौटों का। मैं किसी से घृणा करता हूं, लेकिन जब वह मेरे पास आता है तो मैं मुस्कुराकर उसका स्वागत करता हूं। यह मेरा एक बनावटी चेहरा है, जिसे मैं उसके सामने व्यक्त करता हूं। लेकिन साथ ही साथ मेरे मन में असीम पीड़ा है, दुख है, फिर भी मैं मुस्कुराता हूं। तो यह चेहरा, यह मुखौटा, मेरा सद- -मुखौटा होगा। मुखौटा तो जरूर होगा। आपने मृत्यु को समझा, मृत्यु के रहस्य को समझा, और आप जीवन को जी रहे हैं - यह भी एक प्रकार का मुखौटा हुआ! आपने सत्य पर विजय प्राप्त कर ली, असत्य पर विजय प्राप्त कर ली, और सत्य का उदघोष करते हैं - यह भी एक मुखौटा हुआ । और साथ अचौर्य (प्रश्नोत्तर) Jain Education International For Personal & Private Use Only 195 www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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