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उस बच्चे ने अपनी किताब में से एक कहावत पढ़कर सुनायी है । किताब में लिखा हुआ है कि आदमी उसके संग से पहचाना जाता है। ए मैन इज़ नोन बाई हिज कंपनी, आदमी अपने संग से पहचाना जाता है। उस लड़के ने अपने पिता से पूछा, क्या यह बात सही है ? उसके पिता ने कहा, यह बिलकुल ही सही है। तो उस लड़के ने कहा, अब एक सवाल और पूछना है। एक अच्छा आदमी और एक बुरा आदमी इन दोनों में दोस्ती है। कौन किससे पहचाना जायेगा ? बुरा आदमी अच्छे आदमी के साथ है, इसलिए समझना चाहिए कि अच्छा आदमी है? या अच्छा आदमी बुरे आदमी के साथ है, इसलिए समझना चाहिए कि बुरा आदमी है ? अब किसको किससे पहचानें? पिता मुश्किल में पड़ गया है !
जीसस पहचाने जा रहे हैं ईसाई के द्वारा, इसलिए जीसस को पहचानना मुश्किल हो गया है। महावीर पहचाने जा रहे हैं जैन के द्वारा, इसलिए महावीर को पहचानना मुश्किल हो गया है। अनुयायी हट जायें, तो इनके फूल अपनी पूरी खूबसूरती में खिल सकें; इनके दीये अपनी पूरी ज्योति में जल सकें; और एक मजा और आ जाए कि हम सारे जगत की संपत्ति मालिक हो जायें ।
अभी जो महावीर को मानता है, वह समझता है कि मोहम्मद उसकी संपत्ति नहीं हैं। और जो मोहम्मद को मानता है, वह समझता है, बुद्ध से मुझे क्या लेना-देना है। उनसे अपना कोई लेना-देना नहीं है। वह और किसी की बपौती हैं, हमारी नहीं। अगर दुनिया में किसी दिन अनुयायी न रहें, तो सारी दुनिया का हेरिटेज, सारी दुनिया की बपौती, प्रत्येक आदमी बपौती होगी। उसमें सुकरात भी मेरे होंगे, मोहम्मद भी मेरे होंगे, महावीर भी मेरे होंगे । और तब हम ज्यादा संपन्न होंगे। और तब संस्कृति पैदा होगी।
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अभी तो संस्कृति पैदा नहीं हो सकी। अभी तो बहुत तरह की विकृतियां हैं और उन विकृतियों को हम अपनी-अपनी संस्कृति कहे चले जाते हैं। मनुष्य की संस्कृति उस दिन पैदा होगी, जिस दिन सारे जगत का सब-कुछ हमारा होगा । सोचें इसे एक और उदाहरण से, तो खयाल में आ जाये।
अगर विज्ञान में भी पच्चीस मत बन जायें, तो दुनिया में विज्ञान बनेगा कि मिटेगा ? अगर न्यूटन के माननेवाले एक गिरोह बना लें और आइंस्टीन के माननेवाले दूसरा गिरोह बना लें; और न्यूटन के माननेवाले कहें, आइंस्टीन को हम नहीं मान सकते हैं, क्योंकि इसने हमारे गुरु की बातों के कुछ विपरीत बोल दिया है। और मेस्पलान को मानने वाले तीसरा गिरोह बना लें। और फ्रेडहायल को मानने वाले चौथा गिरोह बना लें। और गिरोह बनते ही चले जायें। अभी दो-तीन सौ वर्षों में पचास जो बड़े वैज्ञानिक हुए हैं, पचास गिरोह हो जायें, तो विज्ञान विकसित होगा कि मरेगा ?
विज्ञान विकसित हो सका, क्योंकि वैज्ञानिकों के कोई गिरोह नहीं थे । वैज्ञानिकों ने जो भी दिया है, वह सब वैज्ञानिकों की सामूहिक बपौती है। धर्म संस्कृति पैदा नहीं कर पाया, क्योंकि धर्म के गिरोह बन गए हैं। धर्म के दुनिया में तीन सौ गिरोह हैं, इसलिए धर्म कैसे पैदा हो ? अगर ये गिरोह बिखर जायें...!
ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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