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________________ भी मोड़कर उस पर भी चांटा मार देंगे-यह कभी जीसस ने सोचा न होगा। जीसस जैसे विनम्र आदमी के पास इस तरह के लोग इकट्ठे हो जाएंगे? लेकिन इकट्ठे हो गए! असल में विरोधी आकर्षित करता है। जैसे स्त्री के प्रति पुरुष आकर्षित होता है, पुरुष के प्रति स्त्री आकर्षित होती है। इसी भांति जीवन में सब आकर्षण पोलर हैं, सब आकर्षण विरोधी के, अपोजिट के हैं; सब आकर्षण में दूसरा आकर्षित होता है। त्यागी के पास भोगी इकट्ठे हो जाते हैं। तपस्वियों के पास जो तपश्चर्या बिलकुल नहीं कर सकते, वे चरणों पर सिर रखकर बैठ जाते हैं। परमात्मा के खोजियों के पास संसार को पागल की तरह पकड़े हुए लोगों की भीड़ जमा हो जाती है। और फिर ये ही अनुयायी बनते हैं। इसलिए तत्काल परवर्शन शुरू हो जाता है। तत्काल, जो महावीर ने कहा, जैन उसे विकृत कर डालते हैं। जो जीसस ने कहा, ईसाई उसे नष्ट कर देते हैं। जो मोहम्मद ने कहा, मुसलमान ही उसे मिटानेवाला बन जाता है। यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है; लेकिन है। विपरीत आकर्षक है। __इसलिए मैं कहता हूं कि समस्त अनुयायियों को पृथ्वी से विदा हो जाने की जरूरत है। मोहम्मद रहें, बुद्ध रहें, उनकी सुगंध रहे, बीच में अनुयायी न हों। महावीर की चर्चा हो, लेकिन अनुयायी न हों। महावीर की बात लोग सुनें, समझें, पढ़ें, लेकिन कोई इस पागलपन में न पड़े कि कहे, मैं उनका अनुयायी हूं। समझें, पढ़ें, सोचें, आनंदित हों, प्रसन्न हों, नाचें, लेकिन पकड़ें मत। काफी हो चुका पकड़ना, और उस पकड़ने के बुनियादी सूत्र का खयाल न होने से बड़ी कठिनाई हो गई है। वह बुनियादी सूत्र है कि अपोजिट, विरोधी आकर्षक होता है, और हम उसके पास इकट्ठे हो जाते हैं। वह जो इकट्ठा होना है, वही तत्काल दुश्मन के हाथ में चीज चली जाती है। यह जिंदगी में करीब-करीब ऐसा ही नियम है, जैसे पानी में लकड़ी को डालते ही तिरछी हो जाती है-होती नहीं, दिखायी पड़ने लगती है, तत्काल। पानी और हवा के नियम अलग- अलग हैं। जैसे ही लकड़ी हवा में आती है वापस सीधी हो जाती है। पानी में डालो, फिर तिरछी दिखायी पड़ने लगती है। महावीर में जो लकड़ी बिलकुल सीधी है, जैन में बिलकुल तिरछी दिखायी पड़ने लगती है। बुद्ध में जो जीवन सीधा सरल है, बौद्ध में बिलकुल जटिल और तिरछा हो जाता है। मोहम्मद की जिंदगी में जो प्रेम है, वह मुसलमान की जिंदगी में घृणा बन जाता है। जीसस की जिंदगी में जो समर्पण है, वही जीसस के अनुयायी की जिंदगी में आक्रमण बन जाता है। अब अनुयायियों से सावधान होने के लिए काफी इतिहास प्रामाणिक है। इसका यह मतलब नहीं कि मैं कोई महावीर का दुश्मन हूं। दुश्मन तो उनके अनुयायी हैं। इसका यह मतलब नहीं है कि मैं कोई जीसस का दुश्मन हूं। दुश्मन तो उनके अनुयायी हैं। अगर जीसस को उनकी शुद्धता में बचाना हो, तो अनुयायी के कांच अलग कर देना चाहिए। और किसी आदमी को अनुयायी बनने से कुछ नहीं मिलता। सिर्फ जिसका वह अनुयायी बनता है, उसको भ्रष्ट...उसके सिद्धांतों को, उसके जीवन को विकृत करने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं कर पाता है। वह अपने जीवन को तो ठीक नहीं कर पाता। मैं अभी एक छोटी-सी कहानी पढ़ रहा था। एक बच्चा अपने पिता से बात कर रहा है। अचौर्य (प्रश्नोत्तर) 193 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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