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________________ 1 पीछे जाना, बाहर जाना है। इसलिए सब तरह के अनुगमन को मैं चोरी कहता हूं ! और इस तरह के अनुगमन से संस्कृति पैदा नहीं हुई। संस्कृति के पैदा होने में उल्टी बाधा पड़ी है। और ये सारे अनुयायी सिवाय लड़ने के इस पृथ्वी पर और कुछ भी नहीं करते रहे हैं। इन सारे अनुयायियों ने पृथ्वी को खून और रक्त से भरने के सिवाय फूलों से नहीं भरा है । और चर्च, और मंदिर, और मस्जिद, और गुरुद्वारे मनुष्य को लड़ाने का उपक्रम बन गए, उपकरण बन गए। आदमी का इतिहास धर्मों के युद्धों से भरा है। इन अनुयायियों ने मोहम्मद और महावीर, कृष्ण और क्राइस्ट को मानकर, कृष्ण और क्राइस्ट बनने की तो कोई घटना नहीं घटायी, लेकिन एक-दूसरे की हत्या करने में बहुत कुशलता दिखायी। यह हत्या बहुत तरह की है। कुछ लोग तलवारों को लेकर कूद पड़ते हैं, और कुछ लोग केवल विचारों की तलवारें चलाते रहते हैं, सिद्धांतों की । जैन मुसलमान के, मुसलमान हिंदू के, हिंदू ईसाई के, ईसाई बौद्ध के सिद्धांतों का खंडन करते रहते हैं। अगर बहुत जोश ये और सिद्धांतों से लड़ाई-इ ई-झगड़ा ठीक से न हो सके, तो फिर तलवारें भी खिंच जाती हैं। आदमी बुद्ध, महावीर और क्राइस्ट के होने की वजह से ज्यादा आनंदित होना चाहिए था, लेकिन इनके होने की वजह से बड़ा उपद्रव हुआ है । बट्रेंड रसल ने कहीं लिखा है कि परमात्मा अगर जीसस को न भेजता, तो क्या हर्जा था ? तो कम से कम ईसाई तो न होते । ईसाइयों ने मध्य युग में सारे यूरोप में लाशें बिछा दीं। अगर जीसस के लिए बट्रेंड रसल जैसे महत्वपूर्ण व्यक्ति को यह प्रार्थना सोचनी पड़ी कि परमात्मा को क्या हर्ज था कि जीसस को न भेजता, इस एक आदमी को न भेजने से पृथ्वी ज्यादा शांत हो सकती थी, कम से कम लड़नेवाला ईसाई तो न होता, तो सोचने जैसा है। जीसस के आने से पृथ्वी बुरी नहीं हुई। जीसस के आने से तो पृथ्वी में सुगंध बढ़ती; जीसस के आने से तो पृथ्वी पर गीत फैलता; जीसस के आने से तो पृथ्वी धन्यभागी होती; लेकिन हो नहीं पाई, क्योंकि जीसस आए नहीं कि पीछे क्रिश्चियन आ गया। जीसस जो बनाते हैं, क्रिश्चियन मिटा देता है। जीसस कहते हैं, प्रेम करो पड़ोसी को अपने ही जैसा, क्रिश्चियन पड़ोसी के लिए तलवार पर धार रखता है। मोहम्मद कहते हैं कि एक ही परमात्मा है और सभी उसके बेटे हैं; लेकिन मुसलमान उसी के बेटों को काटने निकल पड़ता है। हिंदू कहते हैं, सभी कुछ परमात्मा है, फिर भी शूद्र को छूते वक्त सभी कुछ परमात्मा है, यह वेदांत का खयाल एकदम तिरोहित हो जाता है । बड़े से बड़े ज्ञानी को हो जाता है ! मुसलमान के साथ बैठते वक्त सरक कर बैठ जाता है बड़े से बड़ा ज्ञानी, जो कहता है कि ब्रह्म सबमें विराजमान है। अचानक पता चलता है कि ब्रह्म मुसलमान में विराजमान होने से डरता है। जीसस, कृष्ण, क्राइस्ट, महावीर, बुद्ध, कनफ्यूशियस, इन सबके होने से जगत सौभाग्यशाली था। लेकिन इनके पीछे एक बाढ़ आती है उन उपद्रवियों की, जो संगठन खड़े करते हैं, जो संगठनों को लड़ाते हैं । अनुयायियों के दल खड़े होते हैं, और धर्म राजनीति बन जाता है। जैसे ही धर्म अनुयायियों के हाथ में पड़ता है, संगठित होता है, आर्गनाइज्ड हो जाता है, वैसे ही राजनीति बन जाता है। धर्म संगठन नहीं है । धर्म साधना है । अनुयायी संगठन अचौर्य (प्रश्नोत्तर) Jain Education International For Personal & Private Use Only 191 www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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