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हैं; लेकिन जैन दुनिया में हों, खतरनाक है । बुद्ध बात और है, सुगंध और है; बुद्धको माननेवाला दुर्गंध है, सुगंध नहीं है। इसके कारण हैं।
पहला कारण तो यह कि जैसे ही किसी व्यक्ति ने यह तय किया कि मैं किसी दूसरे के पीछे चलूंगा, वैसे ही वह अपनी आत्मा को खोने वाला हो जाता है। दूसरे के पीछे चलने का उपाय ही नहीं है। असल में दूसरे के पीछे चलने का मतलब यह है कि यह आदमी जीवन की वास्तविक यात्रा से बचना चाहता है। जो जिन नहीं होना चाहता, वह जैन हो जाता है। जो बुद्ध नहीं होना चाहता है, वह बौद्ध हो जाता है। जो क्राइस्ट होने की हिम्मत नहीं जुटा पाता, वह क्रिश्चियन हो जाता है। यह समझौता है । क्रिश्चियन होने में कुछ भी नहीं करना पड़ता है। क्राइस्ट होना, जिंदगी को जोखिम में डालना है। जैन होने में क्या करना पड़ता है ? जिन होना बड़ी तपश्चर्या है। जैन होने में सिर्फ जिनों की पूजा करनी पड़ती है। पूजा खेल है। जिन होने में पूजा नहीं करनी पड़ती, साधना करनी पड़ती है । साधना संकट है; साधना श्रम है; साधना संकल्प है।
असल में जो व्यक्ति अपनी आत्मा को पाने का श्रम नहीं उठाना चाहता, वह किसी तरह की पूजा करके अपने मन के लिए खेल पैदा कर लेता है । जो व्यक्ति स्वयं को नहीं पाना चाहता, वह किसी दूसरे के पीछे चलने का खेल खेलने लगता है। और दूसरे के पीछे चलकर कोई कभी अपने को पा नहीं सका है। क्योंकि दूसरा सदा बाहर है और मैं कितना ही दूसरे के पीछे चलूं, सारी पृथ्वी घूम आऊं, तो भी मैं भीतर नहीं पहुंच जाऊंगा | अगर मुझे भीतर पहुंचना है, तो बाहर चलना बंद करना पड़ेगा। और अनुगमन सदा बाहर चलना है। अनुगमन में सदा बाहर चलना ही होगा; दूसरा बाहर है, उसके पीछे बाहर ही जाना पड़ेगा।
महावीर किसी के पीछे नहीं जाते, जीसस किसी के पीछे नहीं जाते, कृष्ण किसी के पीछे नहीं जाते। यह बड़े मजे की बात है कि जो लोग किसी के पीछे नहीं गए, उनके पीछे कितने लोग चले जाते हैं ! बुद्ध किसी के पीछे नहीं जाते, लेकिन बुद्ध के पीछे बहुत लोग चले जाते हैं। अगर बुद्ध से ही कुछ सीखना है तो कम से कम एक बात तो सीख ही लेनी चाहिए कि किसी के पीछे नहीं जाना है । अगर महावीर से ही कुछ सीखना है, तो एक बात सीख लेनी चाहिए कि किसी की पूजा से कुछ भी होनेवाला नहीं है; क्योंकि महावीर किसी की पूजा में नहीं हैं। अगर जीसस से ही कुछ सीखना है, तो एक बात सीख लेनी चाहिए कि परमात्मा को बिना क्रिश्चियन हुए भी पाया जा सकता है। जीसस तो क्रिश्चियन नहीं थे। अगर मोहम्मद से कुछ सीखना है, तो एक बात पक्की सीख लेनी चाहिए कि परमात्मा का मुसलमान से कुछ लेना-देना नहीं है। मोहम्मद तो मुसलमान नहीं थे । परमात्मा मोहम्मद को भी मिल सकता है, जो मुसलमान नहीं हैं।
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जिनके पीछे सारी दुनिया चल रही है, वे किसी के पीछे नहीं चलते। और उनके पीछे हम इसीलिए चल रहे हैं कि हम भी वह पा लें, जो उन्होंने पाया ! लेकिन हम देखें तो विज्ञान कहीं भूल हो गई है, गणित में कहीं चूक हो गई है। उन्होंने पाया ही इसलिए कि वे अपने भीतर जाते हैं, और हम पाना चाहते हैं किसी के पीछे जाकर !
ज्यों की त्यों धरि दीन् हीं चदरिया
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