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कारण है। बाहर सब है, भीतर कुछ भी नहीं है; आत्मा नहीं है, निजता नहीं है । सब है, सिर्फ आदमी नहीं है। सब है, चांद पर पहुंचने की ताकत है, पर अपने तक पहुंचने की सामर्थ्य नहीं है। धन है बहुत, स्वयं का होना बिलकुल नहीं है। महल हैं बहुत बड़े, पर उसमें रहनेवाला बहुत छोटा, न के बराबर, शून्य !
चोरी का यह परिणाम है। पश्चिम को अचौर्य सीखना पड़ेगा, तो रिक्तता मिटेगी, तो एप्टीनेस मिटेगी। मार्सेल को, कामू को, सार्त्र को निजता, इंडिविजुअलिटी को जगाने के नियम सीखने पड़ेंगे, खोजने पड़ेंगे।
सब जब हो जाये, तभी पता चलता है कि मैं नहीं हूं। और तब जो पीड़ा मन को पकड़ लेती है, वह दुनिया की कोई दरिद्रता नहीं पकड़ा सकती। यह जो अचौर्य है, यह निजता को पाने का सूत्र है; और चोरी स्वयं को खोने का सूत्र है ।
ओशो, आपने कहा है कि हिंदू होना, जैन होना, ईसाई होना, यह सब किसी व्यक्ति के पीछे अनुगमन है, इसलिए यह सब चोरियां हैं। लेकिन हिंदू, जैन, ईसाई, बौद्ध-क्या ये सब उधार व्यक्तित्व हैं? और क्या ये शाश्वत नियमों पर आधारित विभिन्न संस्कृतियां नहीं हैं? क्या इन विभिन्न संस्कृतियों के बीच जीवन का शुभ फलित नहीं हो सकता है ? इसमें आप चोरी कैसे देखते हैं?
महावीर चोर नहीं हैं, उनसे ज्यादा अचोर व्यक्ति खोजना मुश्किल है; लेकिन महावीर जैन नहीं हैं, महावीर जिन हैं । और जिन और जैन के अंतर को थोड़ा समझ लेना उचित है। जिन वह है, जिसने अपने को जीता; जैन वह है, जो जीतनेवाले के पीछे चलता है। गौतम बुद्ध चोर नहीं हैं, उनसे ज्यादा अचोर व्यक्ति खोजना मुश्किल है; लेकिन गौतम बुद्ध बुद्ध हैं, बौद्ध नहीं हैं। बुद्ध वह है, जो जागा है; बौद्ध वह है, जो जागे हुए के पीछे चलता है।
ऐसे ही, जीसस चोर नहीं हैं, लेकिन जीसस क्राइस्ट हैं। क्राइस्ट का मतलब, जिसने अपने को सूली दे दी और उसे पा लिया, जो स्वयं को मिटाने से उपलब्ध होता है। लेकिन जीसस क्रिश्चियन नहीं हैं । क्रिश्चियन वह है जो सूली पर लटके हुए आदमी के पीछे चलता है और फर्क बहुत पड़ जाते हैं। जीसस की गर्दन सूली पर लटकती है और ईसाई की गर्दन में छोटा-सा क्रॉस लटका रहता है। गर्दनों में क्रॉस नहीं लटकते, क्रासों पर गर्दनें लटकती हैं। जीसस सूली पर चढ़ते हैं, वे क्राइस्ट हैं; क्रिश्चियन अपने गले में एक सोने की सूली लटका लेता है! एक तो सोने के क्रॉस नहीं होते, सोने की सूलियां नहीं होती; अगर सोने की सूलियां होंगी, तो सिंहासन किस चीज का बनाइएगा? और सूलियां गलों में नहीं लटकाई जातीं, गले सूलियों पर लटकाये जाते हैं । क्रिश्चियन चोर हैं।
मोहम्मद बात और है, मुसलमान बात और है। मोहम्मद दुनिया में हों, यह सुखद है, सुंदर है; मुसलमान दुनिया में हों, यह खतरनाक है। महावीर दुनिया में हों, स्वागत के योग्य
अचौर्य (प्रश्नोत्तर)
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