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________________ लेकिन उस आदमी को तो हम छोड़ें, हम सिर्फ छाया हैं, आत्मा हमने खो दी है। हमारा कितना खो गया है उसका हिसाब लगाना बहुत मुश्किल है। हम सिर्फ शैडोज़ हैं, हम सिर्फ छायाएं हैं। उस आदमी की सिर्फ छाया खो गई थीं तो वह इतनी मुश्किल में पड़ गया और हमारी तो आत्मा भी खो गई है, तो हम कितनी मुश्किल में न होंगे? लेकिन चूंकि सभी की खो गई है, इसलिए हमें कोई गांव के बाहर नहीं कर देता है। और अगर छाया खो जाए, तो दूसरे को पता भी चल जाता है, लेकिन आत्मा खो जाए, तो सिर्फ स्वयं को ही पता चल सकता है, किसी दूसरे को पता नहीं चल सकता। क्योंकि आत्मा कोई बाह्य घटना नहीं है। इसलिए अचौर्य की बात समझते समय एक प्रश्न निरंतर अपने से पूछना चाहिए, कुछ भी मेरे पास है जिसे मैं कह सकूँ कि मेरी निजता है? जो मैं जन्म के साथ लाया था? जो मैंने जीवन में नहीं सीखा? कुछ भी मेरे पास है, जो जन्म के पहले भी मेरा था? यदि ऐसा कुछ भी आपको स्मरण आता हो कि आपके पास है, जो जन्म के पहले भी आपके पास था, तो आप आश्वस्त हो सकते हैं कि आप जब मरेंगे, तब भी आपके पास कुछ बच रहेगा। लेकिन अगर जन्म के बाद का ही सब पाया हुआ है, तो मृत्यु उस सब को छीन लेगी। जन्म के पहले का अगर आपके पास कुछ भी है और ऐसा लगता है कि जिसे आपने जीवन से नहीं सीखा, जीवन से नहीं लिया, जीवन से नहीं पाया; जिसे लेकर ही आप आए हैं; जो आपका स्वभाव है; तो मृत्यु से डरने का कोई कारण फिर आपके लिए नहीं है। क्योंकि जो आपने जीवन से नहीं पाया, उसे मृत्यु नहीं छीन पाती। लेकिन हम सब डरते हैं मरने से। हम डरते हैं इसीलिए इसलिए नहीं कि मृत्यु दुखदायी है। आज तक किसी ने नहीं कहा कि मृत्यु दुखदायी है-मृत्यु दुखदायी है इसलिए नहीं डरते, बल्कि इसलिए डरते हैं कि जीवन जिसे हम कहते हैं, उसमें हमारे पास ऐसा कुछ भी नहीं है, जो मृत्यु से बचकर हमारे पास बच सके। वह सब छीन लिया जायेगा। जो भी हमने दूसरों से पाया है, उसे हम कभी मृत्यु के पार नहीं ले जा सकते हैं। चाहे वह धन हो, चाहे वह यश हो, चाहे वह ज्ञान हो, चाहे वह व्यक्तित्व हो, वह कुछ भी हो; जो हमने दूसरों से पाया है, वह मेरा नहीं है। तो हम चोर हैं। वह जो दूसरों से हमने इकट्ठा कर लिया है, वही हमारी चोरी है। यह बहुत गहरी चोरी है, जिसे अदालत नहीं पकड़ेगी। यह बहुत गहरी चोरी है, जिसका कानून से कोई संबंध नहीं है। यह चोरी एक और बहुत बड़े कानून से संबंधित है, जिस कानून का नाम धर्म है। यह चोरी भी किसी अदालत में पकड़ी जाती है, लेकिन वह अदालत परमात्मा की अदालत है। क्या हमारे पास कुछ भी हमारा है? जिसे मैं कह सकू कि सीखा नहीं, अनलर्ड; कह सकू, किसी से लिया हुआ नहीं; कह सकूँ कि मैं ही हूं। अगर ऐसा कुछ भी नहीं है, तो हम जिस जीवन को जी रहे हैं, वह चोरी का जीवन है। और ऐसा नहीं है। लेकिन एक बार भी यह स्मरण आ जाये कि मेरे पास ऐसी कोई संपदा नहीं जो मेरी हो, मेरे पास ऐसी कोई निजता नहीं जो मेरी हो, तो जीवन में क्रांति शुरू हो जाती है। 186 ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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