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________________ भरे क्षण में भी कोई आपके भीतर होना चाहिए, जो आपके क्रोध को भी देख रहा है। भोजन कर रहे हैं; भोजन करते समय भी कोई आपके भीतर होना चाहिए जो भोजन नहीं कर रहा है, बल्कि जो यह भी जान रहा है कि भोजन किया जा रहा है। अगर प्रतिपल जीवन के अंतरजाल में हम अपने भीतर किसी को बचा पाते हैं, तो वह जो बचा हुआ है, जो शेष है, द रिमेनिंग, वही हमारी निजता है । उस निजता का जिसके पास अस्तित्व नहीं है, वह आदमी आदमी कहे जाने का हकदार नहीं रह जाता। उसके पास कोई आत्मा नहीं है। उसने अपनी आत्मा खो दी है। हममें से बहुत कम लोगों के पास इस अर्थों में आत्मा है... बहुत कम लोगों के पास ! हम वही हैं— छिलकों का जोड़; वस्त्रों का जोड़; उसके पीछे और कुछ भी नहीं है। इसे भी मैं चोरी कहता हूं। यह चोरी है। किसी का धन चुरा लेना बहुत बड़ी चोरी नहीं है, लेकिन किसी का व्यक्तित्व ओढ़ लेना बहुत बड़ी चोरी है। किसी के वस्त्र चुरा लेना बहुत बड़ी चोरी नहीं है, लेकिन किसी के जैसे बनने की चेष्टा में अपने को खो देना बहुत बड़ी चोरी है। किसी के मकान पर कब्जा कर लेना उतनी बड़ी चोरी नहीं है— चोरी है, मैं यह नहीं कह रहा हूं कि वह चोरी नहीं है - पर उतनी बड़ी चोरी नहीं है, जितनी अपनी आत्मा को खोकर किसी आत्मा की छाया बन जाना बड़ी चोरी है। 1 सुना है मैंने कि एक आदमी की जिंदगी में कुछ देवता नाराज हो गए थे और उन्होंने उसे अभिशाप दे दिया था। वह अभिशाप बड़ा अजीब था । उन्होंने अभिशाप दे दिया था कि आज से तेरी छाया खो जायेगी ! वह आदमी हंसा । उसने देवताओं से कहा, छाया से मुझे प्रयोजन भी क्या है? अगर मैं बच गया, तो छाया न होने से मुझे क्या कमी पड़नेवाली है ? छाया पड़ती है मेरी या नहीं पड़ती है, इसकी मैंने आज तक न चिंता की, न फिक्र की। तुम पागल तो नहीं हो गए हो? अगर नाराज ही हो गए हो, तो यह अभिशाप कोई बड़े काम का मालूम नहीं पड़ता। लेकिन देवता हंसे, क्योंकि देवता उस आदमी से ज्यादा जानते थे । वह आदमी अपने गांव में लौटा हंसता हुआ कि देवता भी पागल हो गए मालूम होते हैं। छाया खोने से मेरा क्या खो जायेगा ! लेकिन गांव में आकर उसको पता चला कि देवता पागल नहीं हैं, वही मुश्किल में पड़ गया है। जिस आदमी ने भी देखा कि उसकी छाया नहीं पड़ती है, वह उसे देखकर भागा। पत्नी ने द्वार बंद कर लिया। पिता ने कहा, हट जाओ, मेरी आंख के सामने दुबारा मत आना। तुम भूत हो, प्रेत हो-क्या हो ? मित्रों ने दरवाजे बंद कर लिए । ग्राहक उसकी दुकान पर आने बंद हो गए। रास्ते से निकलता तो लोग अपने मकानों में अपने बच्चों को बुला लेते कि भीतर आ जाओ, वह आदमी निकल रहा है जिसकी छाया नहीं है। उस आदमी का गांव में जीना मुश्किल हो गया। अंततः गांव के लोगों ने निर्णय किया कि इस आदमी को गांव के बाहर कर दें। यह आदमी खतरनाक है। ऐसा कभी सुना नहीं कि छाया रहित आदमी हो। और अंततः उस गां लोगों ने उस आदमी को बाहर निकाल दिया। तब उस आदमी को पता चला कि छाया खोकर बहुत कुछ खो गया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only अचौर्य (प्रश्नोत्तर) 185 www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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