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વવદ્યાર્થી
प्रश्नोत्तर
शो, अचौर्य पर आपने कहा है कि शरीर, भाव या मन के तल पर किसी दूसरे की नकल या किसी दूसरे का अनुगमन चोरी है। लेकिन जीवन अंतर-संबंधों
का एक जाल है; यहां सब जुड़े हुए हैं। तब व्यक्ति अपनी शुद्धतम मौलिकता तथा बाहर से आने वाली सूक्ष्म तरंगों के प्रभाव अथवा आरोपण को किस प्रकार पृथक करे? और वह उससे कैसे बचे?
जीवन अंतर-संबंधों का जाल है, लेकिन जीवन सिर्फ अंतर-संबंध ही नहीं है। अंतर संबंधित होने के लिए भी व्यक्ति चाहिए, अंतर-संबंध भी दो व्यक्तियों के बीच संबंध है; लेकिन दो व्यक्ति भी चाहिए, जिनके बीच संबंध हो सके। तो जीवन, जो हमें बाहर दिखायी
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