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ऊंचाई पर, जहां महावीर पहुंचे हैं; पहुंच सकता है वहीं, जहां जीसस पहुंचे हैं; पहुंच सकता है वहीं, जहां बुद्ध की समाधि उन्हें ले गई है। उसी निर्वाण में, उसी मोक्ष में, उसी स्वर्ग में, उसी प्रभु के राज्य में प्रत्येक का प्रवेश हो सकता है। __मैं फिर से दोहराता हूं अंतिम बातः परमात्मा की वेदी पर अपने ही प्राणों के खिले फूल का नैवेद्य चढ़ाना पड़ता है। इसके अतिरिक्त कोई उपाय नहीं है।
आज के लिए इतना ही। शेष कल।
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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