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________________ इसलिए नहीं कि उनका वह अनुकरण करेगा, बल्कि इसलिए कि शायद इन सब विकसित फूलों को देखकर उसकी कली भी प्यास से भर जाये और फूल बनने को आतुर हो जाये। इसलिए कि शायद दूसरी वीणाओं को सुनकर उसकी वीणा के तार भी झनझना उठे और उसकी वीणा भी गीत गाने को आतुर हो उठे। इसलिए कि शायद दूसरे के पैरों में बंधे धुंघरुओं की आवाज उसके सोये हुए धुंघरुओं की चुनौती बन जाये, वह भी नाच सके। लेकिन किसी का अनुकरण करने के लिए समझने की जरूरत नहीं है। किसी का अनुकरण करने के लिये समझने की जरूरत ही नहीं है। आंख पर पट्टी बांधिये और चल पड़िये। अनुकरण के लिए अंधा होना बड़ी से बड़ी योग्यता, क्वालिफिकेशन है। समझ बड़ी और बात है। अपनी जिंदगी को अगर सच्चाई की ओर ले जाना हो, स्वयं को अगर विकसित करना हो, तो भूलकर किसी के अनुयायी मत बनना। और न भूलकर किसी को अनुयायी ही बनाना। दोनों ही खतरनाक बातें हैं। समझना दूसरों को, और अगर जिंदगी में कभी आपका भी फूल खिल जाये, तो रख देना बाजार के बीच सड़क पर कि दूसरे उसे देख लें। शायद उनकी कली को भी चुनौती मिल जाये। __ लेकिन उनकी कली जब खिलेगी, तो वह फूल उनके जैसा होगा, आप जैसा नहीं होगा। और उनकी वीणा जब बजेगी, तो संगीत उन जैसा होगा, आप जैसा नहीं होगा। प्रत्येक व्यक्ति को परमात्मा के द्वार पर अपने ही प्राणों का नैवेद्य लेकर पहंचना होता है। और प्रत्येक व्यक्ति को परमात्मा के द्वार पर अपनी ही आत्मा को लेकर पहुंचना होता है। उधार आत्माएं लेकर परमात्मा के द्वार पर कभी कोई प्रविष्ट हुआ हो, ऐसी खबर सदियों में कभी भी नहीं सुनी गई है। वहां तो पूछा यही जायेगा कि प्रामाणिक है? ऑथेंटिक है? अपने को ही लेकर आए हो? किसी और का चेहरा लगाकर तो नहीं आ गए? __उस दरवाजे पर धोखा नहीं दिया जा सकेगा। हो सकता है इस पृथ्वी पर धोखा भी हो जाये। हो सकता है इस पृथ्वी पर नंगा खड़ा हुआ कोई आदमी ठीक महावीर जैसा दिखाई पड़ने लगे। हो सकता है इस पृथ्वी पर कोई पीत-वस्त्र पहने हुए व्यक्ति ठीक बुद्ध जैसा दिखाई पड़ने लगे। हो सकता है इस पृथ्वी पर धोखा हो जाये। लेकिन परमात्मा के सामने सब वस्त्र गिर जायेंगे, और परमात्मा के सामने सब खोलें उघड़ जायेंगी। परमात्मा के सामने जब सब नग्न खड़ा हो जायेगा और परमात्मा के दर्पण में जब अपनी पूरी नग्नता दिखायी पड़ेगी, तो वहां सिवाए उसके कोई भी नहीं मिलेगा, जो आप थे। वहां वह नहीं मिलेगा जो आपने ओढ़ा; वह नहीं मिलेगा जो आपने संभाला; वह नहीं मिलेगा जो आपने अभ्यास किया; वहां तो वही दर्शित होगा, जो आप हैं। उस दिन बड़ा दुख होगा, बड़ी पीड़ा होगी कि कितने जन्म व्यर्थ ही नकल में गंवा दिए, नाटक में गंवा दिए। जिंदगी दूसरे का अनुसरण नहीं, जिंदगी स्वयं का उदघाटन है। जिंदगी दूसरे जैसे होने की प्रक्रिया नहीं, स्वयं जैसे होने का आयोजन है। और जो इस स्वयं होने की चुनौती को स्वीकार करता है, वह महावीर का अनुयायी नहीं बनेगा, लेकिन वहीं पहुंच सकता है; उसी अपरिग्रह (प्रश्नोत्तर) 181 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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