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है। सभी बातें गलत ढंग से लिए जाने पर विपरीत परिणाम लाती है। सभी बातें उलटे ढंग से पकड़े जाने पर जीवन को लाभ नहीं, हानि पहुंचाती हैं। और आदमी जैसा है, उससे गलत ढंग से पकड़े जाने की सदा संभावना है।
एक छोटी-सी कहानी से मैं समझाने की कोशिश करूंगा। ___ एक गांव है, और उस गांव में एक बहुत बड़ा धनपति है, और जैसे कि धनपति होते हैं, वैसा ही धनपति है-कंजूस। एक पैसा उससे छूट नहीं पाता है। और तो और जो नए भिखारी भी गांव में आते हैं, तो पुराने भिखारी उनसे कह देते हैं कि उस दरवाजे पर मत जाना! उस घर से कभी किसी को कुछ नहीं मिला है!
गांव में एक नया मंदिर बन रहा है। गांव के गरीब से गरीब आदमी ने भी उस मंदिर के लिए कुछ न कुछ दिया है; किसी ने हजार दिया है, किसी ने दस हजार दिए हैं; किसी ने पांच दिए हैं, किसी ने एक ही दिया है। गांव के लोगों ने एक फेहरिस्त बना ली। जिस-जिस आदमी ने जो-जो दिया है, उसकी एक फेहरिस्त बना ली। उन्होंने सोचा कि एक भी आदमी गांव में ऐसा न बचे, जिसने कुछ न दिया हो।
फेहरिस्त लेकर गांव के सौ-पचास खास आदमी उस करोड़पति के द्वार पर भी गए। सोचा उन्होंने कि आज तो हम कुछ लेकर ही लौटेंगे; क्योंकि वह फेहरिस्त देखकर भी प्रभावित न होगा? न प्रभावित हो, तो कम से कम संकोच से तो भर जाता है आदमी!
जब वे फेहरिस्त सुनाने लगे कि फलां ने दस हजार दिए हैं, जिसकी कुछ भी हैसियत नहीं है, उसने दस हजार दिए हैं! जो बिलकुल ही दीन-हीन है, उसने भी हजार दिए हैं! जो रोज ही रोटी कमाता है, उसने भी पांच रुपये दिए हैं! वे फेहरिस्त सुनाते जाते और अमीर की तरफ बीच-बीच में देखते जाते कि उस पर क्या परिणाम हो रहा है। अमीर बहत उत्सुक होता जाता दिखायी पड़ा, वह प्रभावित होता दिखायी पड़ा। तब तो गांव के लोगों को लगा कि आज काम बन जायेगा। लेकिन पूरी फेहरिस्त सुनने के बाद वह अमीर तो एकदम खड़ा हो गया। उसने कहा, मैं बहुत प्रभावित हो गया हूं! तो गांव के लोगों ने सोचा कि आज हम लोग निष्फल नहीं लौटेंगे। तब उन्होंने कहा, फिर आप भी कुछ दें! जब आप इतने प्रभावित हो गए हैं!
उस अमीर आदमी ने कहा, तुम मेरे प्रभावित होने का मतलब गलत समझे। मैं इसलिए प्रभावित हो गया हूं कि कल से मैं भी गांव में दान मांगना शुरू करने की योजना बनाऊंगा! जिस गांव में सब लोग देने को राजी हों, उस गांव में दान न मांगना बड़ी गलती है। मैं बहुत प्रभावित हो गया हूं!
आदमी ऐसे ही प्रभावित होता रहा है। महावीर महल छोड़कर सड़क पर आ गए। होना तो यह चाहिए था कि जिनके पास महल थे, उन्हें पता चलना चाहिए था कि वे जरूर किसी व्यर्थ दौड़ में लगे हैं। क्योंकि जिसके पास महल था, वह छोड़कर सड़क पर खड़ा हो गया है।
नहीं, यह नहीं हुआ। हुआ यह कि जो झोपड़ों में थे, उन्होंने सोचा कि जब महलवाला
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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