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________________ महावीर अपनी तरह के, कृष्ण अपनी तरह के। हमने जब भी उनकी तुलना की है, तब भूल हो जाती है। क्योंकि तुलना में हम किसी एक आदमी की तरफ झुक जाते हैं, जिसकी तरफ हमारे व्यक्तित्व का टाइप झुकता है। और तब हम दूसरे को गलत देखने लगते हैं। नहीं, कोई कारण नहीं है। इस पृथ्वी पर लाख तरह के व्यक्तित्व खिल गए हैं, लाख तरह के व्यक्तित्वों के खिलने की संभावना है। तुलना की कोई भी जरूरत नहीं है। लेकिन गहरे में अगर देखें, तो बात एक ही है। जनक महल में हैं, क्योंकि वे कहते हैं कि जब परमात्मा ने महल दिया, तो मैं क्यों छोडूं? महावीर जंगल में हैं; लेकिन बात एक ही है। वे कहते हैं, अगर उसको रखना है, तो जंगल में भी महल की तरह रख लेगा। मैं क्यों फिक्र करूं? दोनों एक ही बात कहते हैं; लेकिन दोनों के व्यक्तित्वों के ढंग अलग हैं। वह एक बात ही इन दो व्यक्तियों में अलग-अलग गीत बन जाती है। वह एक बात ही इन दोनों व्यक्तियों में अलग-अलग स्वर ले लेती है। वह एक बात ही इन दोनों व्यक्तियों में अलगअलग अर्थ बन जाती है। लेकिन वह बात एक ही है। वह परमात्मा में समर्पण की बात है। यह हमें खयाल में आ जाये, तो तुलना बंद कर देनी चाहिए। यह हमारे खयाल में आ जाये, तो प्रत्येक को, वह जैसा है वैसा ही, उसकी पूर्णता में समझ लेने की कोशिश कर लेनी चाहिए, बिना कंपेरीजन के। और तब एक दिन हम समझ पायेंगे कि हजार फूल हों, लेकिन सौंदर्य एक है; और हजार ढंग के दीये हों, लेकिन ज्योति एक है; और हजार ढंग के सागर हों, लेकिन सभी सागरों का पानी एक-सा खारा है। जिस दिन यह दिखाई पड़ना शुरू होता है, उस दिन व्यक्ति विदा हो जाते हैं और वह जो मौलिक आधारभूत सत्य है, उसका दर्शन हो जाता है। ओशो, आज एक और मुश्किल पैदा हो गई है। और वह मुश्किल यह है कि जिस ऊंचाई से अपरिग्रह के बारे में जो प्रश्न पूछे गए हैं, उनका उत्तर आपने उसी ऊंचाई से दिया है, उसी संदर्भ में यह बात सामने आती है कि अपरिग्रह को आप अचाह की संज्ञा देते हैं, डिजायरलेसनेस बताते हैं। सुनने में यह बात बड़ी सार्थक, पाजिटिव लगती है; लेकिन लोग इसे नकारात्मक अर्थों में ले सकते हैं। तब तो सारी वैज्ञानिक खोज और कर्म करने की प्रेरणा ही समाप्त हो जायेगी, सारी प्रगति गतिरुद्ध हो जायेगी। कृपया इसे स्पष्ट करें। साथ ही एक बात और कि महावीर महावीर थे; बुद्ध बुद्ध थे; क्राइस्ट काइस्ट थे; लेकिन उनके अनुयायी उस ऊंचाई को नहीं पा सके कभी भी। और उनके अनुयायियों में एक निष्क्रियता भी पैदा हो गई। नतीजा यह हुआ कि आध्यात्मिक रूप से ऊंचाई को तो नहीं छू सके वे, भौतिक दृष्टि में भी बड़े फीके पड़ गए। ऐसी स्थिति में आपका क्या कहना है? अपरिग्रह की बात दरिद्रता का बचाव बन सकती है। अपरिग्रह की बात प्रगति का विरोध बन सकती है। अपरिग्रह की बात जीवन की संपन्नता की खोज में बाधा बन सकती अपरिग्रह (प्रश्नोत्तर) 175 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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