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________________ तो हमारे पास क्या उपाय है, हम क्या करेंगे? और कल हवाओं से अगर आक्सीजन विदा हो जाये, और कल अगर जिंदगी असंभव हो जाये, तो हम क्या करेंगे? हमने क्या सुरक्षा की है? क्या व्यवस्था की है? कल अगर पृथ्वी ठंडी हो जाये, या कल अगर पृथ्वी टूट जाये और बिखर जाये-अनेक पृथ्वियां बिखर चुकी हैं, अनेक बिखर रही हैं; अनेक सूरज ठंडे हो चुके हैं, अनेक ठंडे हो रहे हैं-कल अगर यह हो जाये, तो हमने क्या व्यवस्था की है? ___ महावीर कहते हैं कि इतने बड़े कॉस्मास में, इतने अनंत ब्रह्मांड में, जहां हमारे हाथ में कुछ भी व्यवस्था नहीं है, वहां यह महावीर नाम का आदमी अपने आसपास एक घर की व्यवस्था भी करे, इस नास्तिकता में पड़ने का क्या अर्थ है? महावीर कहते हैं, यह व्यवस्था भी क्यों? जब इतनी अव्यवस्थाएं भी झेलनी पड़ सकती हैं, तो इतनी-सी अव्यवस्था वे और जोड़ देते हैं। इतनी कॉस्मिक अव्यवस्था में, इतनी ब्रह्मांड की असुरक्षा में, मैं बैंक-बैलेंस रखकर भी क्या व्यवस्था कर पाऊंगा? तो महावीर कहते हैं, यह व्यर्थ का बोझ मैं छोड़ देता हूं। छोड़ देता हूं कि जहां से श्वास आती है, जहां से कल की सुबह आयेगी, जहां से आज का सूरज आया था, और जहां से आज का चांद आया है, और जहां से कल सुबह जड़ों को रस मिलेगा, और जहां से कल वृक्षों में फूल खिलेंगे, और जहां से पक्षी गीत गायेंगे, वहीं से अगर इस परम सत्ता की कोई आकांक्षा इस शरीर को भी जिंदा रखने की है, तो वह रख लेगी: और नहीं रखने की है. तो महावीर की अपनी अब कोई इच्छा शेष नहीं रह गई है। यह महावीर की इस बात की घोषणा है सब को छोड़कर जाना कि अब मैं अपने लिए नहीं जी रहा हूं। अगर परमात्मा जिलाना चाहता है, तो वह जाने। अब मैं अपनी तरफ से नहीं जी रहा हूं। इसलिए महावीर की जिंदगी में एक छोटा-सा नियम था, जो मैं आपसे कहूं, जो बड़ा अदभुत है। शायद दुनिया के किसी संन्यासी ने वैसे नियम का उपयोग नहीं किया है। सच तो यह है कि महावीर जैसा संन्यासी खोजना बहुत मुश्किल है। महावीर का एक नियम था कि सुबह जब भीख मांगने निकलते थे, तो वे अपने मन में सुबह के ध्यान में सोच लेते थे कि आज इस शर्त पर भीख मिलेगी तो स्वीकार करूंगा, नहीं तो नहीं करूंगा! अब भिखारी कभी शर्त नहीं लगाते। भिखारियों की भी कोई कंडिशंस हो सकती हैं? भिखारी बेशर्त मांगते हैं। और महावीर शर्त लगाकर मांगते हैं, क्योंकि वे कोई भिखारी नहीं है। और शर्त भी ऐसी कि दूसरे आदमी को बतायी भी नहीं गई है कि वह कोई इंतजाम न कर ले। शर्त सिर्फ उन्हीं को पता है। जैसे, वह सुबह शर्त लेकर निकले अपने मन में कि अगर आज काले कपड़े पहने हुए, एक आंख वाली एक गोरी स्त्री मुझे भिक्षा देगी, तो ले लूंगा, अन्यथा नहीं लूंगा। अब इस गांव का उन्हें कुछ भी पता नहीं है, रात ही इस गांव में आकर वे ठहरे हैं। अब एक आंख वाली गोरी स्त्री काले कपड़े पहने हुए उनको भिक्षा देगी, तो वे स्वीकार कर लेंगे, अपरिग्रह (प्रश्नोत्तर) 173 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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