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________________ ओशो, आपने अपरिग्रह के तीसरे प्रवचन में कहा है कि महावीर संन्यास के जीवन में आकर बादशाह हो गए, लेकिन उनके बड़े भाई संपन्नता के बीच रहकर भी विपन्न और गुलाम ही रहे। महावीर का आत्मिक समृद्धि उपलब्ध करना, लेकिन भौतिक समृद्धि से परे रहना अर्थात परिग्रह से मुक्त हो जाना, क्या एकांगी व एक-पक्षीय जीवन नहीं है? वे अंतर और बाह्य दोनों समृद्धियों को एक साथ क्यों नहीं स्वीकार कर पाते? महावीर सब छोड़कर चले गए, इसलिए नहीं कि वह समृद्धि थी; बल्कि इसीलिए कि वह समृद्धि नहीं थी। महावीर सब छोड़ कर चले गए, इसलिए नहीं कि वहां कुछ छोड़ने योग्य था; बल्कि इसीलिए कि वहां कुछ भी पकड़ने योग्य न था। लेकिन हमें दिखाई पड़ता है कि उन्होंने महल छोड़ा; हमें दिखाई पड़ता है, हीरेजवाहरात छोड़े; हमें दिखाई पड़ता है, धन-दौलत छोड़ी! यह हमें दिखाई पड़ता है। महावीर ने तो कंकड़-पत्थरों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं छोड़ा। हीरे-जवाहरात हमें दिखाई पड़ते हैं। महावीर को हीरे-जवाहरात में कंकड़-पत्थर दिखाई पड़ गये। ऐसे हीरे-जवाहरात में कंकड़-पत्थरों के अतिरिक्त कुछ है भी नहीं! हां, जिन्होंने महावीर की कथा लिखी है, उन्होंने लिखा है कि इतने हीरे, इतने जवाहरात, इतने माणिक, इतने मोती छोड़े। अगर कोई महावीर से पूछे, तो वे कहेंगे, बड़े पागल हो, कंकड़-पत्थरों के भी अलगअलग नाम रख लिये हैं? हां, अगर महावीर ने कंकड़-पत्थर छोड़े होते, तो हम भी नहीं कहते कि कंकड़-पत्थर छोड़ रहे हैं! हम सबने छोड़े हैं। सभी बच्चे कंकड़-पत्थर इकट्ठे करते हैं। और फिर एक दिन बच्चे नहीं रह जाते, कंकड़-पत्थर छोड़ देते हैं। लेकिन किसी बच्चे की जिंदगी में हम नहीं लिखते कि इस बच्चे ने कंकड़-पत्थर छोड़े; क्योंकि हम जानते हैं कि वे कंकड़-पत्थर हैं। जिस दिन हम जानेंगे कि महावीर ने कंकड़-पत्थर ही छोड़े, उस दिन हम न कहेंगे कि उन्होंने कुछ छोड़ा। ___ नहीं, आश्चर्य यह नहीं है कि महावीर ने क्यों छोड़ा? आश्चर्य यह है कि दूसरे क्यों नहीं छोड़ पाते हैं! महावीर से कोई पूछे, तो वे नहीं कहेंगे कि मैंने कुछ त्यागा; क्योंकि त्यागी तो वह चीज जाती है, जिसमें कोई मूल्य हो। महावीर कहेंगे कि मैंने कुछ भी नहीं त्यागा; क्योंकि जिसमें कोई मूल्य ही नहीं था, उसके त्याग की बात करनी ही व्यर्थ है। आप रोज अपने घर के बाहर कचरा फेंक देते हैं तो अखबार में खबर नहीं छपाते कि आज इतना कचरा त्यागा। महावीर के लिए जो कचरा हो गया है, उसे त्यागने का हक तो उन्हें देना चाहिए न! कि इतना भी हक उन्हें देने को हम राजी नहीं हैं? ___ हां, हमें दिक्कत है, क्योंकि हमें वह कचरा नहीं दिखाई पड़ता। एक बच्चे से उसका कंकड़-पत्थर छीन लें, तब आपको पता चल जायेगा। वह रातभर रो सकता है, सपने में चीख सकता है। उसकी सारी संपत्ति छीन ली आपने, जो वह नदी के किनारे से इकट्ठी कर लाया था! आप कहेंगे, पागल है तू! क्योंकि कंकड़-पत्थर ही थे। आपको लगते होंगे कंकड़-पत्थर, बच्चे को सब रंगीन पत्थर हीरे-मोती से ज्यादा कीमती लगते हैं। अपरिग्रह (प्रश्नोत्तर) 171 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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