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जब वह दरबार में पहुंचा, तो उसने देखा कि वहां तो शराब के प्याले ढाले जा रहे हैं, और वेश्याएं नाच रही हैं! उसने कहा, मैं भी पागल कहां फंस गया हूं! उस गुरु ने भी खूब मजाक किया है। दिखता है छुटकारा पाना चाहता है मुझसे! लेकिन रात? अब लौटना तो उचित भी नहीं। और उस सम्राट ने संन्यासी की बहुत आवभगत की और कहा, आज रात तो रुक ही जाओ। संन्यासी ने कहा, लेकिन रुकना बेकार है। तो सम्राट ने कहा, कल सुबह स्नान करके भोजन करके वापिस लौट जाना। ___ रात भर उस संन्यासी को नींद न आ सकी। सोचा, कैसा पागलपन है। जहां शराब ढाली जा रही हो, और जहां वेश्याएं नाचती हों, और जहां धन ही धन चारों तरफ बरसता हो, वहां इस भोग-विलास में कहां ज्ञान मिलेगा? और ब्रह्मज्ञान का मैं खोजी, आज की रात मैंने व्यर्थ गंवाई! सुबह उठा तो सम्राट ने कहा कि चलें, हम महल के पीछे नदी में स्नान कर आयें। दोनों स्नान करने गए। ..
वे स्नान कर ही रहे थे कि तभी महल से जोर-जोर से आवाजें गूंजने लगी : महल में आग लग गई, महल में आग लग गई। नदी के तट से ही महल से उठी आग की लपटें आकाश में उठती हुई दिखाई पड़ने लगीं।
सम्राट ने संन्यासी से कहा, देखते हैं?
संन्यासी भागा! उसने कहा, क्या खाक देखते हैं? मेरे कपड़े घाट पर रखे हैं। कहीं आग न लग जाये!
लेकिन घाट पर पहुंचते-पहुंचते उसे खयाल आया कि सम्राट के महल में आग लगी है और वह अब भी पानी में खड़ा है, और मेरी तो सिर्फ लंगोटी ही घाट पर रखी है, जिसे बचाने के लिए मैं दौड़ पड़ा हूं! अभी वहां आग पहुंची भी नहीं है! लग सकती है, महल की आग बढ़ जाये और घाट तक आ जाये।
वह वापस लौट कर, खड़े हुए हंसते सम्राट के चरणों में गिर पड़ा। उसने कहा कि मैं समझ नहीं पा रहा, आपके महल में आग लग गई है और आप यहीं खड़े हैं?
सम्राट ने कहा, उस महल को अगर मैंने कभी अपना समझा होता, तो खड़ा नहीं रह सकता था। महल महल है, मैं मैं हूं। मेरा महल कैसे हो सकता है? मैं नहीं था, तब भी महल था; मैं नहीं रहूंगा, तब भी महल होगा। मेरा कैसे हो सकता है? लंगोटी थी आपकी, महल मेरा नहीं है!
नहीं, सवाल वस्तुओं का नहीं है कि वस्तुएं किसी को पकड़ लेती हैं। सवाल आदमी के रुख, आदमी के ढंग, एटीट्यूड, उसके सोचने की विधि और जीवन की व्यवस्था का है। वह कैसे जी रहा है, इस पर सब निर्भर करता है। अगर वह वस्तुओं की चाह से भरा है, तो इससे फर्क नहीं पड़ता है कि वह वस्तु महल है या लंगोटी। अगर वह वस्तुओं की चाह से नहीं भरा है, तो फिर कोई फर्क नहीं पड़ता कि पास में लंगोटी है या महल। ___ आदमी अपने ही कारणों से गुलाम होता है; और आदमी ही इन्हीं कारणों को तोड़कर मुक्त भी हो जाता है।
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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