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बिकम्स द पजेस्ड। वह जो वस्तुओं को संभाले हुए है, वह धीरे-धीरे भूल ही जाता है कि वस्तुएं उसकी सेवा के लिए थीं। और उसने कब वस्तुओं की सेवा करनी शुरू कर दी, इसका उसे पता भी नहीं चलता!
नहीं चलेगा पता। नहीं चलेगा इसलिए कि वस्तुएं इस आदमी के पास नहीं आई हैं, यह आदमी वस्तुओं के पास गया है। गुलाम ही जाते हैं, मालिक कभी नहीं जाते। आप जिसके पास जायेंगे, मालकियत उसी को मिल जायेगी। __ वस्तुएं आपके पास कभी नहीं आतीं, आप वस्तुओं के पास जाते हैं। आदमी वस्तुओं को खोजता है, वस्तुएं आदमी को नहीं खोजती हैं। तो जिसे आप खोजते हैं, जिसके लिए आप श्रम उठाते हैं, जिसके लिए आप कष्ट झेलते हैं, जिसे आप बामुश्किल से पा पाते हैं, अगर उसे आप छाती पर रखकर संभालें, और उसके नीचे दब जायें, तो बहुत आश्चर्य नहीं; क्योंकि सदा डर है कि वह खो न जाये! ____ मैंने सुना है कि रयोकान नाम के एक झेन फकीर के घर में एक रात चोर घुस गया। तो रयोकान उस चोर के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और उसने कहा, माफ करना, बड़ी गलत जगह आ गए हो। आठ-दस मील की यात्रा करके भी आए हो और इस गरीब के झोपड़े में तो कुछ भी नहीं है! बस, यह कंबल है एक, इसे तुम ले जाओ।
उसने चोर को वह कंबल दे दिया। रयोकान नंगा हो गया; क्योंकि उसके पास सिर्फ कंबल ही था. और ठंडी रात थी। उस चोर ने बहत कहा कि आप यह क्या कह रहे हैं। आपके पास कुछ भी नहीं है, फिर भी आप यह कंबल दे रहे हैं! ___ तो रयोकान ने कहा कि याद रखना! आज तू एक मालिक के घर में घुस गया है। अब तक तू गुलामों के घर में घुसा था। वे कोई भी एक चीज तुझे नहीं दे सकते थे। जिनको तू सोचता है, जिनके पास बहुत है, वे तुझे एक चीज न दे सकते थे। लेकिन अब तू याद रखना कि ऐसे मालिक भी हैं, जिनके पास कुछ नहीं है। असल में वे मालिक इसीलिए हैं कि उनके पास कुछ नहीं है। यह कंबल तू ले जा।
वह चोर कंबल लेकर चला गया। जैसे आज चांद निकला है, ऐसे ही उस रात भी निकला हुआ था। रयोकान अपने दरवाजे पर बैठ गया। सर्द रात! चांद की किरणें! ठंडी हवाएं। वह कांपने लगा।
अगर रयोकान गुलाम आदमी रहा होता, तो उसने कहा होता कि बहुत बुरा हुआ कि कंबल चोरी चला गया, या मैंने कंबल दे दिया। लेकिन वह एक मालिक था। उसके मन में उस लगती हुई सर्दी को देखकर यह खयाल भी नहीं आया कि कंबल चला गया तो बहुत बुरा हुआ।
उसने एक गीत लिखा उस रात। उसने लिखा कि काश, यह चांद भी मैं चोर को भेंट कर सकता! बेचारा चोर, चोरी के चक्कर में है। चांद ऊपर है, इसे देख भी नहीं पा रहा है!
उस रात उसने एक गीत लिखा, काश! आज मैं चांद भी चोर को भेंट कर सकता...! बेचारा चोर...! चोरी के चक्कर में चांद को देख ही नहीं पा रहा है!
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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