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आदमी के जीवन में आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत करते हैं। यह उसकी पहली किरण है। ___ लेकिन मैं ऐसा नहीं कहता हूं कि सभी संपन्न आदमी इस क्रांति को उपलब्ध हो जाते हैं। अधिकतर संपन्न आदमी सिर्फ आधार बनाकर ही रह जाते हैं। उनके जीवन में क्रांति का भवन कभी निर्मित नहीं हो पाता। लेकिन उसके भी कारण हैं। और ऐसा भी नहीं है कि गरीब आदमी कभी आध्यात्मिक नहीं हो पाता। गरीब आदमी भी आध्यात्मिक हो जाता है। लेकिन उसके भी कारण हैं। ___ पहली बात तो यह ठीक से स्मरण में ले लेनी चाहिए कि अनुभव के अतिरिक्त और कोई ज्ञान नहीं है। अनुभव ही ज्ञान है। धन का अनुभव ही धन से मुक्ति लाता है। और अगर एक व्यक्ति इस जीवन में अपनी गरीबी में भी आध्यात्मिक हो गया है, तो उसके किसी न किसी जन्म की यात्रा में धन के अनुभव का कारण मौजूद होगा ही। अन्यथा अनुभव के बिना ज्ञान नहीं है। धन के अनुभव के बिना धन से कोई मुक्त नहीं हो सकता। जिसे हमने जाना नहीं, वह व्यर्थ है, इसे भी हम कैसे जान सकेंगे? जिस दुख को हमने पाया नहीं, वह छोड़ने योग्य है, इस निष्कर्ष पर भी हम कैसे पहुंच सकेंगे? जो अपरिचित है, वह शत्रु है, इसकी पहचान की भी तो कोई संभावना नहीं है।
शत्रु को भी पहचानना हो, तो परिचित हो जाना जरूरी है। और गलत को भी जानना हो, तो गलत से गुजरना पड़ता है। और राह के गड्ढे उन्हीं को पता होते हैं, जो राह के गड्ढों में गिरते हैं और भटकते हैं। इसके अतिरिक्त जीवन में कोई उपाय भी नहीं है।
हां, यह हो सकता है जिसे हम जीवन कहते हैं, वह बहुत छोटा है, पर जीवन की यात्रा बहुत लंबी है-एक आदमी अपने पिछले जन्मों में धन के अनुभव से इतना सेचुरेट, इतना पूरा हो चुका हो कि इस जन्म में गरीबी से भी उसकी अध्यात्म में छलांग संभव हो जाये। अन्यथा और कोई कारण नहीं हो सकता। और अगर इस जन्म में भी कोई आदमी धन को पूरी तरह पाकर भी दीन और दरिद्र बना रहता है, धन को पूरी तरह पाकर भी धन से मुक्त नहीं होता, तो मैं कहना चाहूंगा कि जो धन से मुक्त होता है, उसी ने धन को पूरी तरह पाया है, इसका प्रमाण देता है।
धनी वही है, जो धन को छोड़ पाता है। अगर नहीं छोड़ पाता है, तो उसके भीतर दीन और दरिद्र बैठा हुआ है। अगर इस जन्म में कोई पूरी तरह धन को पाकर भी धर्म की प्यास को जगाने में असमर्थ है, तो इसका एक ही अर्थ है कि उसके बहुत से पिछले जन्म इतनी दीनता और दरिद्रता में कटे हैं कि इतना धन भी उसकी दीनता के अनुभव को नहीं काट पा रहा है। उसके भीतर की दरिद्रता खड़ी ही रह गई है। वह अभी भी भीतर दरिद्र है। धन का अनुभव अभी नया है। अभी वह अनुभव ज्ञान नहीं बन पाया है।
बहुत बार अनुभव से गुजरने पर ज्ञान बनता है। ज्ञान बहुत से अनुभवों का सार-संक्षिप्त है। ज्ञान बहुत से अनुभव के फूलों का इत्र है। इस आदमी के लिए धन का अनुभव पहला है। अभी धन का अनुभव उसका ज्ञान नहीं बन पाया है। जैसे ही धन का अनुभव ज्ञान बनता है, वैसे ही व्यक्ति धन से मुक्त होने लगता है।
अपरिग्रह (प्रश्नोत्तर) 163
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