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________________ 158 को पैदा नहीं कर सकती। और अगर सामाजिक परिस्थिति महावीर को पैदा करती है, तो यह सामाजिक परिस्थिति महावीर के लिए, अकेले के लिए परिस्थिति थी ? बिहार में और लाखों लोग थे । यह सामाजिक परिस्थिति ही अगर महावीर को पैदा करती, तो और पचासों महावीर क्यों पैदा नहीं करती? अगर रूस की परिस्थिति लेनिन को पैदा करती है, तो कितने लेनिन पैदा करती है ? नहीं, सामाजिक परिस्थितियां व्यक्तियों को पैदा नहीं करतीं। और करती हों, तो वे व्यक्ति नहीं हैं, सिर्फ सामाजिक घटनाएं हैं। और सामाजिक घटनाएं अहिंसक नहीं हो सकतीं, हिंसक होंगी; क्योंकि वह पशु के तल पर वापस लौट गई बात है । व्यक्ति चुनाव है। मैं भी इतने से राजी हो जाऊंगा कि माओ या स्टैलिन मनुष्य के तल पर बहुत ऊपर नहीं उठते, पशु के तल पर बहुत नीचे चले जाते हैं । लेकिन आप कहेंगे, 'मनुष्य के कल्याण के लिए ही वे हिंसा कर रहे हैं !' सदा हिंसाएं जब भी की गई हैं, तो कल्याण के लिए ही की गई हैं। मध्य युग में ईसाई पादरियों ने लाखों लोगों को जलवा डाला - मनुष्य के कल्याण के लिए। मुसलमान हिंदू को मारता है—मनुष्य के कल्याण के लिए! हिंदू को मुसलमान इसलिए नहीं मारता कि हिंदू से उसकी कुछ दुश्मनी है, इसलिए मारता है कि हिंदू बेचारा काफिर है, भटका हुआ है, उसे रास्ते पर लाना है ! और न आता हो रास्ते पर तो कम से कम मारकर उसकी आत्मा को अगले जन्म में रास्ते पर लगा दें। हिंदू मुसलमान को इसलिए नहीं मारता कि उसका कुछ बुरा सोचता है; बल्कि इसलिए मारता है कि भटका हुआ है, रास्ते पर लाना है! जैसे गाय को और दूसरे पशुओं को, घोड़ों को, यज्ञों में चढ़ाया जाता रहा - कि यज्ञ में चढ़ाने से ये घोड़े, ये गायें स्वर्ग चली जायेंगी। ऐसे ही, धर्म की बलिवेदी पर, एक-दूसरे के धर्मों के लोगों को लोग चढ़ाते रहते हैं— उनके ही कल्याण के लिए! कम्युनिज्म लाखों लोगों को काट डालता है— उनके ही कल्याण के लिए। फॉसिज्म लाखों लोगों को काट डालता है— उनके ही कल्याण के लिए। हिंसा जब प्रखर रूप से फैलना चाहती है, तो आपके ही कल्याण का मुखौटा पहनकर आती है। चालाक है, साधारण भी नहीं है; कनिंग है। साधारण हिंसा कहती है कि मैं आपको अपने हित में मारना चाहती हूं; और चालाक हिंसा कहती है, आपके ही हित में आपको मारना चाहती हूं। हर बार आदमी बहाने बदल लेता है। अब इस्लाम और हिंदू और कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट ये सब पुराने बहाने हो गए हैं तो कम्युनिज्म, सोशलिज्म नये बहाने हैं। कुछ दिनों में वे भी पुराने हो जायेंगे, फिर आदमी और नये बहाने खोज लेगा। आदमी को हिंसा करनी है, उसके लिए बहाने खोजता है । बहाने हैं, इसलिए हिंसा नहीं करता है। अगर हम माओ या स्टैलिन के चित्त का विश्लेषण करें, तो हम उनके भीतर एक विक्षिप्त आदमी को पायेंगे। लेकिन वह विक्षिप्त आदमी बड़ा होशियार है, वह रेशनलाइज करता है। क्रांति, समाज- क्रांति, ऊटोपिया, भविष्य के स्वर्ण-युग - इनको लाने के लिए लाखों-लाखों लोगों को काट डाला जाता है। ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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