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इस अनुभव को मैं समानुभूति कहता हूं, जब तारे दूर नहीं रह जाते, मेरे भीतर घूमने लगते हैं; जब मैं तारों से दूर नहीं रह जाता और उनकी किरणों पर नाचने लगता हूं; और जब सागर की लहरें दूर नहीं रह जातीं, मेरी ही लहरें हो जाती हैं; और जब मैं दूर नहीं रह जाता, सागर की लहरों पर झाग बन जाता हूं; और जब वृक्षों पर खिले फूल मेरे ही फूल होते हैं, और वृक्षों से गिरे सूखे पत्ते मेरे ही सूखे पत्ते होते हैं; तब मैं अलग नहीं रह जाता हूं।
अलग हम हैं भी नहीं। अलग होने से ज्यादा कोई भ्रम नहीं है । सेप्रेटनेस, अलग होने का खयाल सबसे बड़ा इलूजन है, सबसे बड़ा भ्रम है; लेकिन उसे हम पालकर जीते हैं। उपयोगी है, अगर उसे हम न पालें, तो कठिनाई होगी।
आपका धन है, तो उसे मैं मेरा नहीं कह सकता। आपके कपड़े हैं, और उन्हें मैं उतार कर मेरे नहीं बना सकता । जीवन के व्यवहार में आपकी दुकान है, वह मेरी नहीं है; और आपका मकान है, वह मेरा नहीं है। हालांकि आपके घर मेहमान होता हूं तो आप कहते हैं, सब आपका ही है! लेकिन उसको गंभीरता से लेने की कोई भी जरूरत नहीं है।
जीवन के व्यवहार में सीमाएं काम करती मालूम पड़ती हैं, लेकिन जीवन सिर्फ व्यवहार का नाम नहीं है। जीवन सिर्फ दूकान नहीं है; मकान और कपड़े नहीं है । जीवन केवल आजीविका के उपाय नहीं है । जीवन तिजोरियों में नहीं है, वस्त्रों में नहीं है । जीवन बड़ी बात है । जीवन सिर्फ उपयोगिता, यूटिलिटी नहीं है । जीवन आनंद भी है। जीवन लीला भी है, जीवन अपार रहस्य भी है। इसलिए जो उपयोगिता को सब मान लेगा, वह मुश्किल में पड़ जायेगा। उपयोगिता में हम बहुत झूठी बातें करते हैं, पर उनसे काम चलता है, चल जाता है; क्योंकि सारी उपयोगिता माने हुए सत्यों पर चलती है।
मैं किसी के घर रुकता हूं, और कहता हूं, पानी का एक गिलास ले आयें। और वह गिलास में पानी ले आता है ! अब तक कोई 'पानी का गिलास' लाता हुआ मिला नहीं । काम चल जाता है, पर झूठ है बिलकुल । पानी का गिलास लाइएगा भी कैसे ? पानी का गिलास लाया नहीं जा सकता। लेकिन समझें, हम दोनों समझ गए। वह पानी का गिलास तो नहीं लाता - गिलास तो कांच का लाता है, तांबे का लाता है, पीतल का लाता है - उसमें पानी
आता है। न तो मैं उससे झगड़ा करता हूं कि आपने मेरी बात मानी नहीं, न वह मुझसे झगड़ा करता है कि आप बड़ी आध्यात्मिक भाषा बोल रहे हैं। काम चल जाता है।
लेकिन जिंदगी कामचलाऊ नहीं है, जिंदगी कामचलाऊपन से ऊपर है । हमारी सब भाषा कामचलाऊ है, उससे इशारे हो जाते हैं, गैस्चर्स हैं; और काम चल जाये, बात पूरी हो जाती है। लेकिन जिसने कामचलाऊपन को, व्यवहार को जिंदगी समझ लिया, वह आदमी जिंदगी के बड़े रहस्यों से वंचित रह जाता है। उसके लिए जिंदगी के परम रहस्य के द्वार खुल ही नहीं पाते। उसके लिए जीवन - वीणा का संगीत बज ही नहीं पाता। उसके लिए परमात्म पुकारता रहता है, उसे उसकी पुकार सुनायी ही नहीं पड़ती।
यह जो अद्वैत, यह जो असीम अनंत जीवन है, उपयोगिता में उसे खो मत देना । उसे उपयोगिता के बाहर खोजते ही रहना । उसे मेरे तेरे के बाहर अन्वेषण करते ही रहना। उसे
ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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