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________________ तो बहुत जल्दी, बहुत शीघ्र धीरे-धीरे, अचानक जीवन में एक्सप्लोजन होने लगेंगे। और एहसास होने लगेगा कि न तो उस तरफ कोई तू है और न ही इस तरफ कोई मैं है। शायद एक ही है दोनों तरफ। एक के ही बायें और दायें हाथ दो छोरों पर हैं। एक ही हवा की लहर, जो इधर आई थी, उधर चली गई है। आप जो श्वास ले रहे हैं, मेरे पास आ जाती है, फिर मेरी हो जाती है। और मैं ले भी नहीं पाता कि निकल जाती है और आपकी हो जाती है। अभी वृक्ष लेता था उसे, अभी पृथ्वी लेती थी उसे, अभी आपने लिया था उसे, अभी मैंने लिया उसे! जीवन एक सतत प्रवाह है, जीवन एक अखंड धारा है। जीवन एक है, लेकिन हम उस एकता का अनुभव नहीं कर पाते; क्योंकि हम सब ने अपने आसपास परकोटे खींचे हैं, हमने अपनी दीवालें बनायी हैं, हमने सब तरफ से अपने को रोका है और सब तरफ सीमाएं बनायी हैं। ये सीमाएं हमारी कल्पित बनाई गई सीमाएं हैं, ये सीमाएं कहीं हैं नहीं। ये सीमाएं हमने बना रखी हैं, ये सीमायें कामचलाऊ हैं, इन सीमाओं का कहीं कोई अस्तित्व नहीं है। अगर एक वैज्ञानिक से पूछे, तो वह भी कहेगा, नहीं है; और अगर एक आध्यात्मिक से पूछे, तो वह भी कहेगा, नहीं है। आध्यात्मिक इसलिए कहेगा कि आत्मा के फैलाव को देखा है उसने। और वैज्ञानिक इसलिए कहेगा कि सब सीमाएं खोजी और सीमाओं को कहीं पाया नहीं उसने। वैज्ञानिक से पूछे कि आपका शरीर कहां समाप्त होता है? तो वह कहेगा, कहना मुश्किल है। हड्डियों पर समाप्त होता है? हड्डियों पर समाप्त नहीं होता, क्योंकि हड्डियों पर मांस है। मांस पर समाप्त होता है? मांस पर समाप्त नहीं होता, क्योंकि मांस पर चमड़े की पर्त है। चमड़े की पर्त पर समाप्त होता है? चमड़े की पर्त पर समाप्त नहीं होता, क्योंकि बाहर हवा की अनिवार्य पर्त जरूरी है। अगर वह न रह जाये, तो न हड्डी होगी, न मांस होगा। हवा की पर्त पर समाप्त होता है? नहीं, हवा की पर्त तो दो सौ मील पृथ्वी के पूरे होने पर समाप्त हो जाती है। लेकिन अगर सूरज की किरणें इस हवा के पर्त को न मिलती रहें, तो यह हवा की पर्त भी न रह जायेगी। सरज तो दस करोड मील दर है। तो मेरा शरीर सरज पर समाप्त होता है ? दस करोड़ मील दूर? तो सूरज भी ठंडा पड़ जायेगा अगर महासूर्यों से उसे प्रकाश की किरण निरंतर न मिलती रहे। तो मेरा शरीर समाप्त कहां होता है? वैज्ञानिक कहता है, सब सीमाएं खोजी और सीमाओं को नहीं पाया। आध्यात्मिक कहता है, भीतर देखा और असीम को पाया। आध्यात्मिक कहता है, असीम को पाया; वैज्ञानिक कहता है, सीमाओं को नहीं पाया। वैज्ञानिक नकार की भाषा बोलता है, निगेटिव की। वह कहता है, सीमा नहीं है। आध्यात्मिक पाजिटिव की, विधेय की भाषा बोलता है; वह कहता है, असीम है। लेकिन उन दोनों बातों का मतलब एक है। और आज विज्ञान और धर्म बड़े निकट आकर खड़े हो गए हैं। उनकी सारी घोषणाएं निकट आकर खड़ी हो गई हैं। आज वैज्ञानिक नहीं कह सकता कि आपका शरीर कहां समाप्त होता है। यह शरीर वहीं समाप्त होता है, जहां ब्रह्मांड समाप्त होता होगा। इसके पहले समाप्त नहीं होता। ब्रह्मचर्य (प्रश्नोत्तर) 153 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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