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________________ इस एक का अनुभव अहिंसा है। इसलिए इसमें सहानुभूति नहीं हो सकती। सहानुभूति में दूसरा जरूरी है। इसमें समानुभूति हो सकती है। दूसरा इसमें नहीं बचा है। समानुभूति, चित्त और मन के पार है। वह बियांड माइंड है। वह मन के भीतर और मन के नीचे नहीं-मन के ऊपर और मन के पार है। यह जो मन के पार घटना घटती है, यही अध्यात्म है। सिर्फ आध्यामिक कह सकता है, वही जो तुम हो, वही मैं हूं। सिर्फ आध्यात्मिक कह सकता है कि सूरज में जो जल रही है ज्योति, वही इस छोटे-से मिट्टी के दीये में भी जल रही है। सिर्फ आध्यात्मिक कह सकता है कि कण में जो है वही विराट में भी है। सिर्फ आध्यात्मिक कह सकता है कि बूंद और सागर एक ही चीज के दो नाम हैं। समानुभूति का अर्थ है-बूंद और सागर एक हैं। और जिसने एक बूंद को भी पूरा जान लिया, उसे सागर में जानने को कछ बाकी नहीं रह जाता। एक बंद जान ली तो परा सागर जान लिया। जिसने अपने भीतर की बूंद जान ली, उसने सबके भीतर के सागर को भी जान लिया। फिर वह मरता नहीं। कैसे मरेगा, क्योंकि वह बचा नहीं। फिर वह अहंकार, वह 'मैं' विदा हो गया, क्योंकि कोई 'तू' नहीं मिला कहीं। जब तक 'तू' मिले, तभी तक 'मैं' बच सकता है। जब 'तू' न मिले तो 'मैं' भी नहीं बच सकता। वह 'तू' और 'मैं' की जोड़ी साथसाथ है। ___ मार्टिन बूबर ने आई एंड दाउ, एक किताब लिखी है। कीमती किताब है। मैं और तू। मार्टिन बूबर के खयाल से जीवन के सारे संबंध मैं और तू के संबंध हैं। लेकिन एक और जगत भी है, जो मैं और तू के बाहर है, बियांड आई एंड दाउ। एक और जगत है, वास्तविक जीवन का-संबंधों का नहीं-जीवन-ऊर्जा का, परमात्मा का, जहां मैं और तू नहीं हैं। ___ बंगाली में एक छोटा-सा नाटक है, जिसमें कथा है कि एक यात्री वृंदावन गया है। रास्ते में, उसके पास जो सामान था, सब चोरी हो गया। पर सोचा उसने, अच्छा ही है कृष्ण के पास खाली हाथ जाऊं, यही उचित है। क्योंकि भरे हाथ को वे भी कैसे भर पायेंगे! अगर कृष्ण से भरना है, तो खाली हाथ ही लेकर जाऊं, यही उचित है। शायद कृष्ण ने ही चोर भेजे होंगे। उसने धन्यवाद दिया और आगे बढ़ गया। फिर वह मंदिर के द्वार पर पहुंचा, लेकिन द्वारपाल ने उसे रोक लिया और कहा, भीतर न जा सकोगे। पहले सामान बाहर रख दो। तो उसने कहा, अब तो सामान बचा भी नहीं, वह तो कृष्ण के चोर पहले ही छीन चुके। नहीं, द्वारपाल ने कहा, पहले सामान बाहर रख दो, फिर भीतर जा सकते हो। यहां तो सिर्फ खाली हाथ ही जा सकते हो। उस आदमी ने अपने हाथ देखे, वे खाली थे। उसने द्वारपाल के सामने हाथ किए, वे खाली थे। द्वारपाल ने कहा, नहीं, भरे हाथ नहीं जा सकते हो। पर आदमी ने कहा कि मैं तो अब बिलकुल खाली हाथ ही हूं! उस द्वारपाल ने कहा, जब तक तुम हो, तब तक कैसे खाली हाथ हो सकते हो? जब ब्रह्मचर्य (प्रश्नोत्तर) 151 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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