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________________ परमहंस स्वामी रामकृष्ण का जिक्र किया। और जिसमें आपने यह भी बताया कि एक किसान पर जब कोड़े लग रहे थे, उस समय उन कोड़ों के निशान स्वामी रामकृष्ण परमहंस की पीठ पर भी दिखाई पड़ रहे थे। ___ तो ये सहानुभूति और समानुभूति-ये दो चीजें हिंसा-वृत्ति के संदर्भ में क्या इनमें सूक्ष्म भिन्नता है, यह बताने की कृपा करें। और साथ ही साथ यह बताने की कृपा भी करें कि जिसे आपने समानुभूति का नाम दिया है, क्या वह मानसिक तल की घटना है या आध्यात्मिक तल की बात है? सहानुभूति, सिम्पैथी साधारणतः बड़ी मूल्यवान और कीमती चीज समझी जाती रही है-है नहीं। सहानुभूति का अर्थ है, कोई आदमी दुखी है और आप उसके दुख में दुख प्रकट करते हैं; दुखी होते हैं। सहानुभूति का अर्थ है, सह-अनुभूति; दूसरे के साथ-साथ अनुभव करना। लेकिन जो आदमी दूसरे के दुख में दुख अनुभव करता है, वह आदमी दूसरे के सुख में कभी सुख अनुभव नहीं कर पाता! अगर किसी के बड़े मकान में आग लग जाये, तो आप दुख प्रकट करते हैं; लेकिन किसी का बड़ा मकान बन जाये, तो सुख नहीं प्रकट कर पाते! इस बात को समझ लेना जरूरी है। इसका मतलब क्या हुआ? इसका मतलब यह हुआ कि सहानुभूति एक धोखा है। सहानुभूति तभी सच्ची हो सकती है, जब दूसरे के दुख में दुख अनुभव हो और दूसरे के सुख में सुख अनुभव हो। ___लेकिन दुख में तो दुख अनुभव हम कर पाते हैं या दिखा पाते हैं, सुख में सुख अनुभव नहीं कर पाते। इसलिए, कर पाते हैं, कहना ठीक नहीं होगा, दिखा पाते हैं, कहना ठीक होगा। जब दूसरा दुखी होता है, तो हम दुख प्रकट कर पाते हैं। अगर हम दूसरे के सुख में भी सुखी हो पायें, तब तो हमारा दुख प्रकट करना वास्तविक होगा। अन्यथा दूसरे के दुख में भी हमें थोड़ा-सा रस आता है; दूसरे के दुख में भी हमें थोड़ा मजा आता है; दूसरे के दुख में भी हम रस भोर होते हैं। ___ इसलिए जब आप किसी दूसरे के दुख में दुख प्रकट करने जायें, तब जरा अपने भीतर टटोलकर देखना कि कहीं आपको मजा तो नहीं आ रहा है! एक तो मजा यह आता है कि हम सहानुभूति प्रकट करनेवाले हैं और दूसरा आदमी सहानुभूति लेने की स्थिति में पड़ गया है। जब कोई दूसरा आदमी सहानुभूति लेने की स्थिति में पड़ जाता है, तो याचक हो जाता है और आप मुफ्त में दाता हो जाते हैं। दूसरा आदमी जब सहानुभूति लेने की स्थिति में पड़ जाता है, तो आप विशेष और वह दीन हो जाता है। और अपने भीतर आप खोजेंगे, तो अपने दुख प्रकट करने में भी आपको एक रस की उपस्थिति मिलेगी। मिलेगी ही! इसलिए मिलेगी, कि अगर न मिले तो आप दूसरे के सुख में भी पूरी तरह सुखी हो पायेंगे। लेकिन दूसरे के सुख में तो ईर्ष्या भर जाती है, जेलेसी भर जाती है, जलन भर जाती है! दूसरा पहलू इस बात की खबर देता है कि दूसरे के दुख में हम दुखी नहीं हो सकते, लेकिन इसी को हम सहानुभूति कहते रहे हैं। इसी को मैं सहानुभूति कहकर बात कर रहा ब्रह्मचर्य (प्रश्नोत्तर) 149 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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