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रहता है, जैसे सूरज की किरणें बरसती हैं। वह वैसे ही बरसता रहता है, जैसे वृक्षों में खिले हुए फूल बरसते रहते हैं। किसी के लिए नहीं, वृक्ष के पास बहुत हो गए हैं इसलिए ओवर फ्लोइंग है। चीजें बाढ़ में आ गयी हैं और बरसती रहती हैं।
दुखी आदमी संबंध खोजता है, और जिनसे संबंध खोजता है, सिर्फ उन्हें दुखी छोड़ पाता है। किस आदमी ने संबंध बनाकर सुख पाया? किस आदमी ने संबंधित होकर किसी को सुख दिया? कोई नहीं दे पाता है। यह सारी पृथ्वी दुखी लोगों की पृथ्वी है। और यह सारी पृथ्वी दुखी लोगों के प्रयास से-सुख पाने के और सुख देने के प्रयास से-करोड़-गुना दुखी होकर नर्क बन गई है।
काम-क्रीड़ा हिंसा का एक रूप है, क्योंकि दुखी चित्त की खोज है। अहिंसा आनंदित चित्त का बहाव है। हिंसा दुखी चित्त का, विक्षिप्त रोगों का दूसरों में संक्रमण, इनसैक्सन है। इसलिए पार्श्व तक ब्रह्मचर्य को अलग सूत्र ही नहीं गिना। __महावीर को गिनना पड़ा। क्योंकि महावीर जिस समाज में पैदा हुए, वह एक डेकाडेंट सोसाइटी थी। वह एक मरता हुआ समाज था। महावीर जिस समाज में पैदा हुये वह भारत में उन्नति के शिखर पर पहुंचा हुआ समाज था और जब उन्नति के शिखर पर कोई समाज पहुंच जाता है, तो पतन शुरू हो जाता है। सब शिखर पर पहुंचे हुए समाज, पतित होते हुए समाज होते हैं। जैसे अमरीका आज एक डेकाडेंट सोसाइटी है। उसने एक शिखर छू लिया है। अब पतन होगा। सब चीजों में बिखराव होगा। जहां-जहां शिखर छू लिया जायेगा, वहांवहां बिखराव होगा। ___ महावीर जिस समय भारत में पैदा हुए, उस समय, विशेषकर बिहार अपनी उन्नति के स्वर्ण-शिखर पर था। सब तरफ स्वर्ण था। सब तरफ उन्नति ऊंचाई पर थी। सब चीजें सड़ रही थीं और गिर रही थीं। इस समाज के बीच महावीर जैसे व्यक्ति को अहिंसा की बात करनी पड़ी। इस बात को बहुत गहरे तक ले जाना मुश्किल था, क्योंकि जो कान थे, वे बहरे थे। ____ ऋषभ को जो लोग मिले थे वे सीधे-सरल लोग थे। विकासमान समाज था- डिकाडेंट नहीं। इवॉल्व हो रहा था। विकसित हो रहा था। लोग बच्चों की तरह भोले थे, सरल थे, सीधे थे। उनसे बहुत गहरी बात की जा सकती थी और वे गहरी बात सुन सकते थे। अभी वे बहरे नहीं हो गए थे। अभी सभ्यता और संस्कृति के शोर ने उनके कानों को फोड़ नहीं डाला था। अभी उनकी आत्माओं में बच्चों की सरलता और ताजगी थी। अभी वहां गीत पहुंच सकते थे। अभी वहां स्वर पहुंच सकते थे। इसलिए उन्होंने ब्रह्मचर्य की बात ही नहीं की। क्योंकि अहिंसा में ही ब्रह्मचर्य अपने आप समाविष्ट हो जाता था। __ लेकिन महावीर को सूत्र पांच कर देने पड़े। चार की जगह एक सूत्र और बढ़ाना पड़ा। क्योंकि उन लोगों को यह समझाना मुश्किल हुआ कि अहिंसा इतनी गहरी हो सकती है कि काम, सेक्स भी हिंसा हो जाये। और इसीलिए तो महावीर के आधार पर जो विचार की परंपरा चली, वह परंपरा अहिंसा की उन गहराइयों को नहीं छू पाई, जो ऋषभ और पार्श्व के मन में थीं। महावीर के आधार पर जो विचार चला, वह विचार-चींटी मत मारो, पानी छान कर
ब्रह्मचर्य (प्रश्नोत्तर)
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