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________________ एक मनुष्य बन सकता है। इसलिए एक संभोग में लाखों व्यक्तियों की हत्या तो हो ही रही है। यह लाखों व्यक्तियों की हत्या हिंसा है। तीसरी बात और खयाल में ले लेनी जरूरी है। जिस एक व्यक्ति के पैदा होने की संभावना है, अहिंसा को जिन्होंने बहुत गहरे जाना है, वे कहेंगे कि जिसको तुमने जन्म दिया, उसे तुमने मरने के लिए पैदा किया है। असल में जन्म, मरने की शुरुआत है। जन्म एक छोर है, मौत दूसरा छोर होगी। यदि पिता जन्म के लिए ही जिम्मेवार है, तो आधी जिम्मेवारी ही ले रहा है। मरने की जिम्मेवारी किसकी होगी? मां अगर जन्म देने की ही जिम्मेवारी ले रही है, तो आधी जिम्मेवारी ले रही है। मरने की जिम्मेवारी किसकी होगी? यह तो बड़ा बेईमानी का सौदा हुआ कि जन्म की जिम्मेवारी मां ले ले, पिता ले ले, और मरने की...? असल में जन्म एक छोर है, मौत उसी का ही दूसरा छोर है। इसलिए पूर्ण-अहिंसक चित्त पिता और मां बनने की जिम्मेवारी लेने में असमर्थ होता है। उसका गहरा कारण है। वह किसी की मृत्यु का कारण नहीं बन सकता। जन्म देना, किसी की मृत्यु का कारण बनना है। भले ही सत्तर साल बाद वह मृत्यु हो। इस टाइम गैप से कोई फर्क नहीं पड़ता। समय के अंतराल से कोई फर्क नहीं पड़ता है। तो काम-क्रीड़ा में जो वीर्य-कण दो घंटे बाद मर जायेंगे, वे तो मर ही जायेंगे, जो वीर्य-कण बचेगा, वह भी सत्तर वर्ष बाद, अस्सी वर्ष बाद मर जायेगा। ___ काम-क्रीड़ा जन्म के रूप में मृत्यु को ही जन्माती चली जाती है। लेकिन जीवन का सारा धोखा यही है कि पहले दरवाजे पर लिखा होता है-जन्म, और पिछले दरवाजे पर लिखा होता है-मृत्यु। जब आप भीतर प्रवेश करते हैं, तो जन्म का दरवाजा देखकर प्रवेश करते हैं; और जब बाहर निकाले जाते हैं, तब मृत्यु के दरवाजे से निकाले जाते हैं। जीवन का धोखा यही है कि पहले दरवाजे पर, एंट्रेंस पर लिखा होता है, सुख। और पीछे के दरवाजे पर लिखा होता है, दुख। जब प्रवेश करते हैं, तब सुख की आकांक्षा में, और जब बाहर निकलते हैं, तो फ्रस्ट्रेटेड, दुख से विक्षिप्त और पागल। __मैंने एक मजाक सुना है। मैंने सुना है कि न्यूयार्क में एक आदमी ने बहुत-सी अजीब चीजें इकट्ठी कर ली थीं और एक अजायबघर बना रखा था। लेकिन चीजें इतनी अजीब थीं कि जो भी आदमी अजायबघर में देखने आते थे, वे देखते ही रहते थे, निकलने को राजी नहीं होते थे। और जब तक वे न निकल जायें, तब तक दूसरे लोग टिकट ले कर द्वार पर खड़े रहते, उनके भीतर आने का सवाल न होता। तो बड़ी मुश्किल हो गई थी। आखिर भीतर के लोगों को बाहर निकालना ही पड़ेगा, क्योंकि दरवाजे पर दूसरे लोग दस्तक दे रहे हैं कि उनको भी भीतर आने दिया जाये! और जो भीतर आता वह बाहर निकलता ही नहीं। तो उन अजीब चीजों को संगृहीत करनेवाले आदमी ने एक कारीगिरी, एक कुशलता की। शायद वह कुशलता उसने प्रकृति से.ही सीखी होगी! कोई दस-बारह कमरे थे उस अजायबघर में। एक कमरे से दूसरे कमरे में जाने की तख्ती लगी थी और तीर बना था। पहले ब्रह्मचर्य (प्रश्नोत्तर) 145 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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