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________________ पहियोंवाला था। या कहें कि धर्म के पास चार पैर थे। चतुर्यान था धर्म। महावीर ने एक पांचवां सूत्र जोड़ा-ब्रह्मचर्य। महावीर के पहले पार्श्व तक किसी ने ब्रह्मचर्य को धर्म का सूत्र नहीं बताया था। यह बड़े मजे की बात है और काफी समझ लेने की। यह आश्चर्यजनक मालूम होगा कि ऋषभ से लेकर पार्श्व तक के चिंतकों ने, अनुभवियों ने ब्रह्मचर्य को धर्म का सूत्र नहीं बताया। क्योंकि पार्श्व तक यही समझा जाता रहा कि जो अहिंसा को पा लेगा, उसके जीवन में ब्रह्मचर्य अनायास ही उतर जायेगा। क्योंकि काम अपने आप में एक गहरी हिंसा है, सेक्स अपने आप में एक गहरी हिंसा है। __काम को हिंसा क्यों कहा जा सकता है, इस संबंध में दो-चार सूत्र समझ लेने उपयोगी हैं। और महावीर ने क्यों ब्रह्मचर्य को अलग सूत्र दिया, यह भी थोड़ा सोच लेना उचित होगा। __ महावीर का नाम अहिंसा के साथ गहराई से जुड़ा है; इतना कोई दूसरा नाम नहीं जुड़ा है। लेकिन आश्चर्य होगा आपको यह जानकर कि महावीर को अहिंसा से ब्रह्मचर्य को अलग कर देना पड़ा। और अलग कर देने का कुल कारण इतना है कि महावीर जिन लोगों के बीच बात कर रहे थे, वे बहत गहरी अहिंसा समझने में असमर्थ थे, वे बहत ही उथली अहिंसा समझ पाते थे। इतनी उथली अहिंसा में काम नहीं आता। अहिंसा जब बहुत गहरी होती है, तभी पता चलता है कि कामवासना भी हिंसा का एक रूप है। लेकिन पार्श्व तक चर्चा नहीं करनी पड़ी, क्योंकि अहिंसा बड़े गहरे अर्थों में ली जाती रही। क्यों? दो तीन बातें हैं। __ एक तो जैसा मैंने कहा कि जैसे ही किसी व्यक्ति को दूसरे की चाह पैदा होती है, वह आदमी दुखी है, इसका सबूत हो गया। जैसे ही कोई व्यक्ति कहता है कि मेरा सुख दूसरे से मिलेगा, वैसे ही वह व्यक्ति दुखी है, यह तय हो गया। और जो अपने से भी सुख नहीं पा सका, वह दूसरे से सुख पा सकेगा, यह असंभव है। भ्रम पा सकता है, सुख नहीं पा सकता; धोखा पा सकता है, सत्य नहीं पा सकता; सपने देख सकता है, लेकिन जागजागकर रोयेगा। दूसरे की आकांक्षा ही इस बात का सबूत है कि अभी सुख का सूत्र नहीं मिला। और दूसरे की आकांक्षा के बिना तो काम नहीं हो सकता, सेक्स नहीं हो सकता! वह दूसरे की आकांक्षा में छिपा है। इसलिए भी काम हिंसा है। और इसलिए भी, कि एक व्यक्ति के पास जो वीर्य-कण हैं, वे जीवित हैं। आज पृथ्वी पर साढ़े तीन अरब लोगों की संख्या है। एक साधारण व्यक्ति के जीवन में जितने वीर्य-कण बनते हैं, उतने वीर्य-कणों से इतनी संख्या पैदा हो सकती है, सारी पृथ्वी की। और एक व्यक्ति जीवन भर इन वीर्य-कणों का काम के लिए उपयोग करता रहता है। संभोग के दो घंटे के भीतर...जितने वीर्य-कण शरीर से बाहर जाते हैं, वे दो घंटे के भीतर मर जाते हैं। अगर एकाध वीर्य-कण स्त्री के अंडे तक पहुंच गया, तो वह नये जीवन की यात्रा पर निकल जाता है, और शेष वीर्य-कण दो घंटे के भीतर मर जाते हैं। एक संभोग में लाखों वीर्य-कण मरते हैं। ये वीर्य-कण बीज-रूप में जीवन हैं। इनमें से प्रत्येक वीर्य-कण 144 ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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