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जब आपके मन में किसी को घूंसा मारने की इच्छा पैदा होती है, तब आप एक छोटा सा प्रयोग करके देखेंगे और बहुत हैरान होंगे और यह प्रयोग मैं मजाक में नहीं कह रहा हूं। अमेरिका में एक बड़ी वैज्ञानिक प्रयोगशाला इस प्रयोग को आज कर रही है।
कैलिफोर्निया में एक संस्था है, इसालेन इंस्टीट्यूट । शायद अमेरिका में एक बहुत कीमती ऋषि आज मौजूद है। उसका नाम है, पर्ल्स । वह जिन लोगों के मन में बड़ी हिंसा है, उनकी आंखों पर पट्टियां बंधवा देता है, तकिए उनके सामने रख देता है, और कहता है, मारो घूंसे और समझो कि दुश्मन सामने है। जिसे तुम्हें मारना है, उसी को मारो !
पहले तो आदमी हंसता है कि तकिए को कैसे मारें! लेकिन किसी दूसरे आदमी को मारने में और तकिए को मारने में हाथ को कोई भी फर्क नहीं पड़ता है । और किसी आदमी मारने में और किसी तकिए को मारने में, खून में जो विष पैदा हो गया है, उसके निकलने में भी कोई फर्क नहीं पड़ता है। दूसरा आदमी भी तकिए से ज्यादा और क्या है ?
तो पर्ल्स अपने हिंसक मरीज को कहेगा कि मारो तकिए को !
पहले मरीज हंसेगा, लेकिन पर्ल्स कहेगा, हंसो मत, मारो! मरीज कहेगा, आप भी क्या मजाक करते हैं! लेकिन पर्ल्स कहेगा, थोड़ा मजाक ही सही, लेकिन मारो! मरीज तकिए को मारना शुरू करेगा और थोड़ी ही देर में आस-पास खड़े लोग देखकर हैरान होंगे कि न केवल मारने में उसकी गति आ गई, न केवल वह तकिए से जूझने लगा, न केवल तकिए से वह दुश्मनी निकाल रहा है, बल्कि वह तकिए को चीरेगा, फाड़ेगा, मुंह से काट डालेगा ; तकिए
टुकड़े-टुकड़े कर देगा ! और जिन लोगों को भी इन प्रयोगों से गुजरना पड़ा है, वे प्रयोग के बाद कहते हैं कि मन बहुत हलका हो गया है। इतना हलका कभी भी नहीं था ।
ये पर्ल्स क्या कह रहा है? ये यह कह रहा है कि तुमने अब तक हिंसा सकारण निकाली है, किसी पर निकाली है। अब तुम हवा में निकाल लो, किसी पर मत निकालो; क्योंकि जब भी किसी पर निकाली जायेगी, तो उसकी प्रतिक्रियाएं होंगी ।
अगर मैं किसी को घूंसा मारूंगा, तो यह घूंसा आकाश में खो नहीं जायेगा, अंतरिक्ष इसको एब्जार्ब नहीं कर लेगा । जिसको घूंसा मारूंगा, वह इसका उत्तर देगा। आज देगा, कल देगा, परसों देगा - प्रतीक्षा करेगा, लेकिन उत्तर देगा । और जब मैं किसी को घूंसा मारूंगा, तो हो सकता है वह बुद्ध जैसा, महावीर जैसा कोई आदमी हो, और उत्तर न भी दे, तो भी जैसे ही मैं किसी को घूंसा मारूंगा, तो मेरे मन में भी प्रतिक्रिया और पश्चात्ताप होगा।
और ध्यान रहे! क्रोध ही बुरा नहीं है, पश्चात्ताप भी उतना ही बुरा है। क्योंकि पश्चात्ताप उलटा हो गया क्रोध है, पश्चात्ताप शीर्षासन करता हुआ क्रोध है । पश्चात्ताप भी उतना ही बुरा है। असल में पश्चात्ताप करके आदमी फिर से क्रोध करने की तैयारी के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं करता है। जब एक आदमी रिपेंट करता है और कहता है, बहुत बुरा हुआ कि मैंने क्रोध किया, तब वह अपने मन को यह समझा रहा है कि मैं इतना बुरा आदमी नहीं हूं, एक बुरा काम हो गया है, यह दूसरी बात है।
पश्चात्ताप करके वह अपने अच्छे आदमी को वापस पुनर्स्थापित कर रहा है। वह
ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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