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________________ ओशो, कृपया समझाएं कि ध्यान-साधना में हिंसक वृत्तियों का विसर्जन और उदात्तीकरण अर्थात डिजोल्यूशन और सब्लीमेशन किस प्रकार घटित होता है? हिंसा की वृत्ति अकेली वृत्ति ही नहीं है, हिंसा की वृत्ति के साथ हिंसा के अनेक वेगों का दमन भी संयुक्त है, सप्रेशन भी संयुक्त है। हिंसा की वृत्ति तो है ही, हिंसा करने की आकांक्षा भी है। लेकिन हजार मौकों पर हिंसा करने का उपाय नहीं होता है। हिंसा करना चाहते हैं और नहीं कर पाते हैं। क्योंकि संस्कृति है, सभ्यता है, जीवन की व्यवस्था है, परिस्थितियां हैं, प्रतिकूलताएं हैं। ऐसा आदमी खोजना मुश्किल है, जिसने किसी क्षण में किसी दूसरे को मार डालने का विचार न किया हो ! ऐसा आदमी भी खोजना मुश्किल है, जिसने किसी क्षण में अपने को ही मार डालने का विचार न किया हो ! दिन में न किया होगा, तो रात सपने में किया होगा। लेकिन सभी आदमी दूसरों को मार नहीं डालते, और सभी आदमी आत्महत्याएं नहीं कर लेते। सोचते हैं, प्रतिकूलताएं हैं... संभव नहीं हो पाता। और जब एक बार हिंसा का भाव मन में उठ जाये और प्रकट न हो पाए, तो हिंसा की वृत्ति तो रहती ही है, हिंसा के भाव का वेग भी दमित हो जाता है। यह भी इकट्ठा होने लगता है। हिंसा की वृत्ति तो भीतर बनी ही रहती है, और न की गई हिंसा की, की गई भावनाएं भी संग्रहीत होती चली जाती हैं। एक जन्म की नहीं, अनेक जन्मों की भी इकट्ठी हो जाती हैं। संग्रह को भी हम अपने साथ लेकर चल रहे हैं । वृत्ति तो साथ है ही, दबाए हुए वेग भी साथ हैं। इधर वृत्ति रोज नये वेग पैदा करती है और उधर पुराने वेगों का संग्रह बढ़ता चला जाता है और किसी भी क्षण विस्फोट हो सकता है। इसलिए हिंसा की वृत्ति से जो मुक्ति है, उस मुक्ति के लिए दो बातें समझ लेनी जरूरी हैः हिंसा की वृत्ति का तो विसर्जन होना ही चाहिए, हिंसा के दबे हुए, दबाए गए वेगों का विसर्जन भी जरूरी है। हिंसा की वृत्ति मिटेगी, तो मैं आने वाले भविष्य में हिंसा के वेगों को पैदा नहीं करूंगा, लेकिन मैंने जो अतीत में वेग दबाये हैं, उनका विसर्जन, उनका रेचन, उनकी कैथार्सिस भी होनी जरूरी है। महावीर ने बहुत सुंदर शब्द कैथार्सिस के लिए प्रयोग किया है। पश्चिम में मनसशास्त्री जिसे कैथार्सिस कहते हैं, रेचन कहते हैं, महावीर ने उसे 'निर्जरा' कहा है। वह बहुत अदभुत शब्द है। निर्जरा का अर्थ है, विदरिग अवे । निर्जरा का अर्थ है, किसी चीज का झड़ जाना । कोई चीज जो इकट्ठी है, उसका बिखर जाना । निर्जरा का अर्थ है, अगर ऊपर धूल इकट्ठी हो गई है, तो धूल के कणों को फेंककर अलग कर देना। बहुत वेग हमारे भीतर इकट्ठे हैं। ध्यान में इनकी निर्जरा, इनकी कैथार्सिस की जा सकती है; और सिर्फ ध्यान में ही की जा सकती है। और कोई उपाय मनुष्य के दबे हुए वेगों की निर्जरा का नहीं है। ध्यान में कैसे की जा सकती है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only ब्रह्मचर्य (प्रश्नोत्तर) 139 www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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