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________________ रात के अंधकार में आंखें बंद थीं या खुली थीं, इससे कोई अंतर न पड़ता था। और रात के अंधकार की कोई भी जिम्मेवारी उस गुहा में बैठे हुए आदमी की न थी। अंधकार था; वह स्थिति थी। लेकिन सुबह जब सूरज निकल आया हो, तब भी अगर वह आदमी आंखें बंद किए बैठा रहे, तो जो अंधकार उसे दिखायी पड़ेगा, वह उसकी अपनी जिम्मेवारी होगी। वह चाहे तो आंख खोल सकता है और अंधकार से मुक्त हो सकता है। __ पशु का जीवन, अमावस की अंधेरी रात जैसा जीवन है। आत्म-ज्ञान की वहां संभावना नहीं है। पशु को कोई बोध नहीं है, स्वयं के होने का; और कोई विकल्प भी नहीं है, कोई स्वतंत्रता भी नहीं है कि वह स्वयं को जान सके। वह संभावना ही नहीं है। इसलिए पशु को आत्म-अज्ञान के लिए जिम्मेवार नहीं कहा जा सकता। वह अंधेरी रात में है और अंधेरे के लिए जिम्मेवार नहीं है। इसलिए पशु अगर आत्म-ज्ञान न खोजे, तो उसे दोषी भी नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन आदमी पशु की यात्रा से उस जगह प्रवेश कर गया है, चेतना के उस लोक में जहां सूर्य का प्रकाश है। और अब भी अगर कोई आदमी अंधेरे में है, तो उसकी जिम्मेवारी सिवाय उसके और किसी पर नहीं हो सकती। ___ हम यदि आत्म-अज्ञानी हैं, तो अपनी आंखें बंद रखने के कारण हैं; वह हमारी स्थिति नहीं है, वह हमारा चुनाव है। प्रकाश चारों तरफ मौजूद है। आदमी उस जगह खड़ा हो गया है विकास के दौर में, जहां से वह स्वयं को जान सकता है। अगर नहीं जानता है, तो स्वयं के अतिरिक्त और कौन जिम्मेवार होगा? इसका यह अर्थ नहीं कि मैं कह रहा हूं, वह आत्म-अज्ञान का पैदा करनेवाला है। नहीं, आत्म-अज्ञान तो है; लेकिन आदमी उसका विध्वंस नहीं कर रहा है, तो भी जिम्मेवारी उसकी है। वह आत्म-अज्ञान को पैदा करनेवाला नहीं है. लेकिन विध्वंस करनेवाला बन सकता है और नहीं बन रहा है। इसलिए रिस्पांसबिलिटि, जिम्मेवारी आदमी की है। ___ आदमी आत्म-अज्ञानी हो तो यह उसका अपना ही निर्णय है। आंख उसने ही बंद रखी है। रोशनी की अब कोई कमी नहीं है। __ सार्च का एक बहुत प्रसिद्ध वचन मुझे स्मरण आता है, प्रसिद्ध भी और अनूठा भी। सार्च का वचन है : मैन इज कंडेम्ड टु बी फ्री, आदमी स्वतंत्र होने को विवश है; मजबूर है। सिर्फ एक स्वतंत्रता आदमी को नहीं है, बाकी सब स्वतंत्रताएं उसे हैं। चुनाव करने के लिए आदमी मजबूर है। सिर्फ एक चुनाव आदमी नहीं कर सकता। वह इतना भर नहीं चुन सकता कि 'चुनाव न करना' चुन ले। यह भर नहीं चुन सकता। ही कैन नाट चूज नाट टु चूज, बाकी तो उसे सब चुनाव करना ही पड़ेगा। इसलिए 'न करने की बात नहीं चुन सकता, क्योंकि यह भी चुनाव ही होगा। आदमी को प्रतिपल चुनना ही पड़ेगा; क्योंकि आदमी चुनाव की एक यात्रा है, पशु चुनाव की यात्रा नहीं है। पशु जो है, वह है। और अगर पशु जैसा भी है उसकी जिम्मेवारी किसी पर होगी तो परमात्मा पर होगी। आदमी परमात्मा की जिम्मेवारी के बाहर है। पशु के 136 ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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