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पशुओं के इतिहास से पूछे कि कोई एकाध पशु हुआ, जो हमारे चंगेज खां के मुकाबले हो? तो पशु कहेंगे, हम बहुत दरिद्र हैं। इस मामले में हमारे पास कोई याददाश्त नहीं है। ____ एक बड़े मजे की बात है कि कोई भी जानवर सजातीय के प्रति हिंसक नहीं होता, सिवाय आदमी को छोड़कर! कोई जानवर अपनी जाति के जानवर को नहीं मारता, हिंसा नहीं करता। इतनी पहचान पशु की हिंसा में भी है। सिर्फ आदमी अकेला जानवर है, जो आदमी को मारता है।
यह भी बड़े मजे की बात है कि हिंदुस्तानी भेड़िये को भी अगर पाकिस्तानी भेड़िये के पास छोड़ दिया जाये, तो नहीं मारेगा। लेकिन हिंदुस्तानी आदमी को पाकिस्तानी आदमी के पास छोड़ना जोखिम से भरा काम है!
भाषाशास्त्री कहते हैं कि शायद भाषा ने गड़बड़ की है। हो सकता है। जो लिंगविस्ट हैं, उनका खयाल सही मालूम होता है। वे यह कहते हैं, चूंकि दोनों भेड़िये भाषा नहीं बोलते-न पाकिस्तानी भेड़िया उर्दू बोलता है, न हिंदुस्तानी भेड़िया हिंदी बोलता है-इसलिए दोनों पहचान नहीं पाते कि हम फॉरेनर हैं! और कोई कारण नहीं। लेकिन
आदमी एक जिले से दूसरे जिले में फारेनर हो जाता है। गुजराती मराठी के लिए फारेनर है, हिंदी बोलनेवाला तमिल बोलनेवाले के लिए फारेनर है। अगर यही सच है, जो भाषाशास्त्री कहते हैं और मुझे लगता है इसमें सचाई है तो क्या ऐसा न करना पड़े किसी दिन कि आदमी को मौन हो जाना पड़े, तभी आदमी आदमी हो सके। शायद, मौन हुए बिना इस पृथ्वी पर आदमियत का पैदा होना कठिन होगा।
लेकिन यह कितनी दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि कोई पशु अपनी जाति के पशु पर हमला नहीं करता, पर आदमी करता है! और कोई पशु अकारण कभी नहीं मारता है-यह भी मजे की बात है सिर्फ आदमी को छोड़कर। अकारण नहीं मारता, अगर कभी मारता भी है, तो उसकी जरूरत होगी। भूख होती है, तो मारता है। रक्षा करनी होती है, तो मारता है। आदमी बेजरूरत मारता है! कोई जरूरत नहीं होती है, तब भी मारता है। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि मारना होता है, इसलिए जरूरत पैदा करता है! बिना मारे नहीं रह सकता, इसलिए जरूरत पैदा कर लेता है। कभी वियतनाम में जरूरत पैदा करता है, कभी कोरिया में जरूरत पैदा करता है, कभी कश्मीर में जरूरत पैदा करता है।
कोई जरूरत नहीं है। न कश्मीर में कोई जरूरत है, न किसी वियतनाम में, न ही किसी कम्बोडिया में। कहीं कोई जरूरत नहीं है। लेकिन आदमी जरूरत पैदा करता है, क्योंकि बिना जरूरत मारेगा, तो जरा ठीक नहीं लगेगा!
आदमी रेशनल है सिर्फ एक अर्थों में कि वह अपनी बेवकूफियों को भी रेशनलाइज करता है, और किसी अर्थ में रेशनल नहीं है। अरस्तू ने जरूर कहा था कि आदमी एक बुद्धिमान प्राणी है, लेकिन आदमी का अब तक का इतिहास सिद्ध नहीं करता। अरस्तू को इतिहास ने गलत सिद्ध किया है। आदमी सिर्फ बुद्धिमानी एक बात में दिखाता है कि अपनी बेवकूफियों को बुद्धिमानी सिद्ध करने की कोशिश करता है। मारता है, तो भी रेशनलाइज
ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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