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________________ रूप से कह सकते हैं कि तुम अतीत के पापी हो। लेकिन संत का फिर आगे कोई भविष्य नहीं है। संत का अर्थ है, जो पूर्ण स्वभाव को उपलब्ध हो गया; जो वही हो गया है, जो हो सकता था। फूल पूरा खिल गया। कली का भविष्य है। कली चाहे तो कली भी रह सकती है और चाहे तो फूल भी बन सकती है। लेकिन फूल फिर लौटकर कली नहीं बन सकता। चाहे, तो भी। फूल फिर फूल हो गया। तो जब हम कली से कहते हैं कि फूल होना तेरा स्वभाव है, तो इसका यह मतलब नहीं है कि हम तथ्य की या फैक्ट की बात कह रहे हैं; हम संभावना की, पोटेंशियलिटी की बात कह रहे हैं। हम कली से कहते हैं कि तेरा फूल होना स्वभाव है; अर्थात तू फूल होना चाहे तो हो सकती है। लेकिन अगर कोई कली, कली ही बनी रहे, और वह कहे कि तथ्य तो यही है कि मैं कली हूं। इसलिए मैं कली ही रहूंगी; क्योंकि कली होना मेरा स्वभाव है, क्योंकि मैं कली हूं...आदमी अगर कहे कि हिंसा मेरा स्वभाव है, तो वह ऐसी ही बात कह रहा है, जैसी यह भ्रांत कली कह रही है। आदमी का स्वभाव नहीं है हिंसा, उसके अतीत का अर्जन है, उसके अतीत के संस्कार हैं। हिंसा आदमी की कंडीशनिंग है, जो कि पश से निकलते वक्त अनिवार्य थी। जैसे कि कोई काजल की कोठरी से निकले और काजल उसके शरीर पर लग जाये, उसके कपड़ों पर लग जाये, जो कि अनिवार्य था। पशु क्षम्य है। अनिवार्य है हिंसा उसके जीवन में होनी। आदमी को क्षमा नहीं किया जा सकता। हिंसा अब उसकी पसंद है, अब अनिवार्य नहीं। अब वह चुन रहा है, इसलिए हिंसा। अगर कली जिद कर ले कली रहने की, तो रह सकती है। लेकिन यह उसकी अनिवार्यता नहीं; यह उसकी नियति, उसकी डेस्टिनी नहीं है। यह उसका अपना ही भ्रांत निर्णय है। और तब इसकी जिम्मेवार वह स्वयं ही होगी। और किसी परमात्मा के समक्ष पहुंचकर वह यह नहीं कह सकेगी कि मुझे कली ही क्यों रखा? क्योंकि कली के भीतर फूल होने की संभावना परमात्मा ने पूरी दे दी थी। वह फूल हो सकती थी। कली होने की जिम्मेवारी हमारी होगी। ___ हिंसा, पशु के लिए अनिवार्यता, हमारे लिए जिम्मेवारी है; पशु के लिए तथ्य, हमारे लिए सिर्फ ऐतिहासिक याददाश्त है; पशु का वर्तमान, हमारा अतीत है। चुनाव सामने है। आदमी अहिंसक होने का निर्णय भी ले सकता है और हिंसक होने का भी निर्णय ले सकता है। ___ इसलिए जब कोई आदमी हिंसक होने का निर्णय लेता है, तो कोई पशु उसका मुकाबला नहीं कर सकता। असल में कोई पशु इतना हिंसक नहीं हो सकता, जितना आदमी हो सकता है। क्योंकि पशु सहज ही हिंसक हैं; और आदमी हिंसक आयोजना से होता है। इसलिए हम चंगेज खां, और तैमूर, और नादिर, और हिटलर, और माओ, और स्टैलिन जैसे हिंसक पशुओं में खोजकर नहीं ला सकते। स्टैलिन के पैरेलल, या चंगेज के समानांतर, अगर हम अहिंसा (प्रश्नोत्तर) 131 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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