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कोई चुनाव नहीं है। मनुष्य चौराहे पर खड़ा है। मनुष्य चाहे तो हिंसक हो सकता है, चाहे तो अहिंसक हो सकता है। यह स्वतंत्रता है उसकी। पशु की यह स्वतंत्रता नहीं है। पशु की यह मजबूरी है कि वह जो हो सकता है, वही है
यह भी समझने जैसा मजा है कि पशु वही है, जो हो सकता है। इसलिए पशु के स्वभाव में और पशु के तथ्य में कोई फर्क नहीं होता। पशु के भविष्य में और पशु के अतीत में कोई डिस्टेंस, कोई फासला नहीं होता। पशु के होने में और हो सकने की संभावना में, कोई फर्क नहीं होता। पशु जो हो सकता है, वह है। दैट व्हिच इज़ पॉसिबल, इज़ एक्चुअल। पशु की एक्चुअलिटी और पॉसिबिलिटी में कोई फर्क नहीं है। आदमी का मामला एकदम बदल गया। आदमी जो है, उससे भिन्न हो सकता है। आदमी की एक्चुअलिटी, उसकी पॉसिबिलिटी नहीं है। जो आदमी वास्तविक आज है, कल उससे और कुछ हो सकता है।
इसलिए किसी कुत्ते से हम नहीं कह सकते कि तुम कुछ कम कुत्ते हो; लेकिन आदमी से कह सकते हैं कि तुम कुछ कम आदमी मालूम पड़ते हो। किसी कुत्ते से यदि हम कहेंगे कि तुम कुछ कम कुत्ते हो, तो यह बिलकुल एबसर्ड स्टेटमेंट होगा। इसका कोई मतलब नहीं होगा। सब कुत्ते बराबर कुत्ते होते हैं। कमजोर हो सकते हैं, ताकतवर हो सकते हैं, बीमार हो सकते हैं, स्वस्थ हो सकते हैं लेकिन कुत्तेपन में कोई फर्क नहीं होगा।
लेकिन आदमियत की मात्राओं में फर्क है। किसी कृष्ण को हम नहीं कह सकते कि तुममें और हिटलर में आदमियत का कोई फर्क नहीं है। किसी बुद्ध को हम नहीं कह सकते कि तुममें और रावण में आदमियत का कोई फर्क नहीं है। ___नहीं, किसी से कहना पड़ता है कि आदमियत बहुत कम मालूम पड़ती है। किसी से कहना पड़ता है, आदमियत इतनी ज्यादा है कि भगवान शब्द खोजना पड़ता है। जिन-जिन के लिए हमने भगवान शब्द खोजा. उसका कल मतलब इतना है कि आदमियत इतनी ज्यादा थी कि आदमी कहना काफी नहीं मालूम पड़ा, ना काफी मालूम पड़ा। ___ आदमी जो है, वही सब-कुछ नहीं है, बहुत-कुछ हो सकता है। आदमी जो है, उसमें उसका अतीत, पशु की यात्रा उसमें जुड़ी है, वह हिंसा है। आदमी जो हो सकता है, वह उसकी अहिंसा है। आदमी का स्वभाव वह है, जो जब वह अपनी पूर्णता में प्रकट हो, तब होगा। आदमी का तथ्य वह है, जो उसने अपनी यात्रा में अब तक अर्जित किया है।
इसलिए मैं कहता हूं, हिंसा अर्जित है, अहिंसा स्वभाव है। इसलिए हिंसा छोड़ी जा सकती है; अहिंसा सिर्फ पाई जा सकती है, छोड़ी नहीं जा सकती। यह फर्क भी समझ लेना जरूरी है। हिंसा छोड़ी जा सकती है, अहिंसा पाई जा सकती है। और अहिंसा अगर पा ली जाये, तो छोड़ना असंभव है। और आदमी कितना ही हिंसक हो जाये, छोड़ना सदा संभव है; क्योंकि वह स्वभाव नहीं है।
प्रत्येक पापी का भविष्य है; और प्रत्येक पापी का भविष्य एक संत का भविष्य है। हम प्रत्येक पापी से सार्थक रूप से कह सकते हैं कि तुम भविष्य के संत हो। प्रत्येक संत का एक अतीत है; और प्रत्येक संत का अतीत पापी का अतीत है। और हम प्रत्येक संत से सार्थक
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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