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है जीवन में, जितनी सुख की आशा हम बांधते हैं। ज्यादा सुख की आशा बांधनेवाले ज्यादा दुख से भर जाते हैं। जो सुख की आशा नहीं बांधता, उसे दुख देने का उपाय नहीं है।
___ जीवन-ऊर्जा जब दूसरे की तरफ बहती है, तो हिंसक है। और वह दुख की तरफ बहती है, नर्क की तरफ बहती है। हम सब अपने-अपने नर्क खोज रहे हैं। कुछ लोग कभी-कभी पीछे लौटकर स्वर्ग खोज लेते हैं। जीवन-ऊर्जा जब पीछे, अंदर की तरफ यात्रा करती है, तो ऊर्ध्वगामी है। वह एक ही ऊर्जा है।
जगत में शक्तियां भिन्न नहीं हैं, सिर्फ दिशाएं भिन्न हैं। जगत में शक्तियां अलग-अलग नहीं हैं, सिर्फ ऊर्ध्वगमन और अधोगमन के फासले हैं। आप नीचे उतर रहे हैं मंदिर की सीढ़ियों से, या ऊपर चढ़ रहे हैं मंदिर की सीढ़ियों से? और यह भी हो सकता है कि एक ही सीढ़ी पर आप खड़े हैं और आपका चेहरा नीचे की तरफ है; और दूसरा आपका मित्र भी खड़ा है उसी सीढ़ी पर और उसका चेहरा ऊपर की तरफ है। तो उस एक ही सीढ़ी पर स्वर्ग और नर्क दोनों घटित हो जायेंगे। आपका पड़ोसी, जिसका चेहरा ऊपर की तरफ है, उसी सीढ़ी पर स्वर्ग में होगा। और आपका चेहरा, जिसका नीचे की तरफ है, उसी सीढ़ी पर, आन द सेम स्टेप, आप नर्क में होंगे।
ऐसे नर्क और स्वर्ग की कोई भौगोलिक अवस्थाएं नहीं हैं, चित्त के रुख किस तरफ देख रहे हैं, इस पर सब निर्भर करता है।
हिंसा अधोगमन है जीवन-ऊर्जा का, अहिंसा ऊर्ध्वगमन है।
ओशो, पिछले प्रवचन में आपने कहा था कि अहिंसा मनुष्य का स्वभाव है और हिंसा मनुष्य की निर्मित है। कृपया इसे पुनः स्पष्ट करेंगे और बताएंगे कि क्या हिंसा प्रकृति-प्रदत्त तथ्य नहीं है?
हिंसा प्रकृति-प्रदत्त तथ्य है, लेकिन मनुष्य का स्वभाव नहीं, पशु का स्वभाव है। और मनुष्य उस स्वभाव से गुजरा है, इसलिए पशु-जीवन के सारे अनुभव अपने साथ ले आया है। हिंसा ऐसे ही है, जैसे कोई आदमी राह से गुजरे और धूल के कण उसके शरीर पर छा जायें, और जब वह महल के भीतर प्रवेश करे, तब भी उन धूल-कणों को उतारने से इनकार कर दे। और कहे कि वे मेरे साथ ही आ रहे हैं; वह मैं ही हूं। __ वे धूल-कण हैं, जो पशु की यात्रा पर, मनुष्य की आत्मा पर चिपक गए हैं, जुड़ गए हैं; स्वभाव नहीं है। पशु के लिए स्वभाव है, क्योंकि पशु के लिए कोई चुनाव ही नहीं है। मनुष्य के लिए स्वभाव नहीं है, क्योंकि मनुष्य के लिए चुनाव है।
। असल में मनुष्यता शुरू होती है च्वायस से, चुनाव से। मनुष्य शुरू होता है निर्णय से, डिसीजन से। मनुष्य शुरू होता है संकल्प से। मनुष्य चौराहे पर खड़ा है, कोई पशु चौराहे पर नहीं खड़ा है। सब पशु वन-डायमेंशनल रास्ते पर होते हैं; एक ही रास्ता होता है, जिसमें
अहिंसा (प्रश्नोत्तर)
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