SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हां, ऐसे सुख हैं, जो दूसरों से मिलते हुए मालूम पड़ते हैं, पर मिलते कभी भी नहीं। ऐसे सुख हैं, जो वहम देते हैं कि दूसरों से मिलेंगे, लेकिन जब मिलते हैं, और आंख खुलती है, तो पता चलता है कि खोजा था सुख, पाया है दुख। ऐसे सुख हैं, जो बुलाते हैं दूसरों की तरफ से कि आओ, मैं यहां हूं, और जब हम पास पहंचते हैं, तो पाया जाता है कि बुलाहट सुख की थी, लेकिन धोखा हो गया। जैसे राम स्वर्ण-मृग के पीछे चले गए थे। और सभी जानते हैं कि स्वर्ण-मृग कहीं होते नहीं। कम से कम राम को तो यह जानना ही चाहिए था कि स्वर्ण-मृग कहीं होते नहीं! लेकिन वह कथा मीठी है। कथा अर्थपूर्ण है। हम सभी स्वर्ण-मृग के पीछे चले जाते हैं। सब जानते हैं कि नहीं होते हैं और चले जाते हैं। राम चले गए स्वर्ण-मग को खोजने। कौन होगा पागल, जो राजी होगा कि सोने का और हिरण होगा! होगा कैसे? लेकिन राम भी चले जाते हैं। हमारे भीतर का राम भी चला जाता है! और तब आखिर में हम पाते हैं कि कुछ मिलता नहीं! क्योंकि स्वर्ण-मृग के पीछे जाकर कुछ मिल सकता है? सुख स्वर्ण-मृग है। जब दूसरे से मिलता हुआ मालूम पड़े, तो समझना कि राम चले अब स्वर्ण-मृग को खोजने, अब सीता की चोरी होकर रहेगी। और जब आप दूसरे के पीछे खोजने चले जाते हैं, तो आपके भीतर की जो अंतरात्मा है-कहिए उसे सीता-उसकी चोरी हो जाती है। हो जाते हैं पतित। फिर लंबा युद्ध है। फिर रावण से संघर्ष है। फिर हत्याएं हैं, फिर खून है। वह एक स्वर्ण-मृग के पीछे जाने से राम की पूरे उपद्रव और हिंसा की दुनिया शुरू हुई। एक स्वर्ण-मृग से यात्रा शुरू हुई उपद्रव की, और फिर जब तक कि पूरी हिंसा नहीं हो गई तब तक वह चली। मेरी दृष्टि में यह एक प्रतीक कथा है, एक पैरेबल है। हम भी, जब दूसरे में सुख देखकर भागते हैं, तब हम चले स्वर्ण-मृग के पीछे। तब पतन होगा ऊर्जा का। पतन हो गया उसी क्षण, जब हमने माना कि स्वर्ण के मृग होते हैं। पतन हो गया उसी क्षण, जब हमने माना कि दूसरा सुख दे सकेगा। पतन हो गया उसी क्षण, जब हमने माना कि बाहर सुख हो सकता है। और जिंदगी-भर का अनुभव है कि बाहर सिवाय दुख के कभी कुछ मिला नहीं। दूसरे से सिवाय दुख के सुख कब पाया है? हां, खयाल में रहा है कि मिलेगा, मिलेगा, मिलेगा; मिला कभी नहीं है। वह सदा भविष्य में लगता है कि मिलेगा। अतीत में लौटकर देखें, कब मिला है? किसने किसी दूसरे से सुख पाया है? सच तो यह है कि जिससे जितना सोचा था ज्यादा सुख मिलेगा, उससे उतना ज्यादा दुख ही मिला। ____ इसलिए मां-बाप जिस लड़के का विवाह कर देते हैं, वह पत्नी से उतना दुख नहीं पाता, जितना वह लड़का पा लेता है जो प्रेम-विवाह करता है। प्रेम-विवाह के चट्टान से टकराने की संभावना ज्यादा हो गई, क्योंकि सुख की आकांक्षा ज्यादा हो गई। पोथी-पत्री देखकर जिसका विवाह किया गया, उसने सुख की कभी बहुत आकांक्षा ही नहीं बांधी। इसलिए नाव टकराने के उपाय जरा कम हैं। दुख तो मिलेगा, उसी मात्रा में मिलेगा, जितना पोथी-पत्री से, जन्म-कुंडली देखने से सुख की आशा बंधती होगी, उतना ही मिलेगा। उतना ही दुख मिलता 128 ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy