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कर लेता है। कहता है कि मारना ही पड़ेगा, क्योंकि यह मुसलमान है! मारना ही पड़ेगा, क्योंकि यह हिंदू है! मारना ही पड़ेगा, क्योंकि यह हिंदुस्तानी नहीं, पाकिस्तानी है! जैसे कि किसी का पाकिस्तानी होना मारने के लिए काफी कारण है! काफी हो गई बात कि एक आदमी मुसलमान है, मारो! आदमी कारण खोजता है। यह आदमी पूंजीपति है, मारना पड़ेगा; यह आदमी कम्युनिस्ट है, मारना पड़ेगा! पुराने कारण जरा पिट जाते हैं, बासे हो जाते हैं, तो नये कारण खोजता चला जाता है। नये कारण ईजाद करता है कि अब चलो, पुराना कारण बेकार हुआ, वह खेल बंद करो, नया खेल खेलो! अभी तक बहुत मारे हिंदू-मुसलमान, चलो अब हिंदू-जैन में हो जाये! हिंदू-जैन का न चले तो चलो गरीब-अमीर में हो जाये। आदमी मारना चाहता है, तो कारण खोज लेता है। पशु बिना कारण कभी नहीं मारते। __मैं यह कह रहा हूं कि अगर हम आदमी की हिंसा को समझें, तो हम पायेंगे कि अगर आदमी हिंसक होता है, तो यह उसका चुनाव है। और इसलिए आदमी इतना हिंसक हो सकता है, जितना कोई पशु नहीं हो सकता। क्योंकि पशु का हिंसक होना सिर्फ स्वभाव है-वह उसका चुनाव नहीं है-इसलिए नादिरशाह उसमें पैदा नहीं हो सकता। इसलिए उसमें महावीर भी पैदा नहीं हो सकते। क्योंकि अहिंसा का भी उसे कोई चुनाव नहीं है। आदमी को अहिंसा का भी चुनाव है।
हमने अगर नादिरशाह, स्टैलिन और माओ की खाइयां देखी हैं, तो हमने महावीर, कृष्ण और क्राइस्ट की ऊंचाइयां भी देखी हैं। वे दोनों हमारी संभावनाएं हैं। खाइयां, हमारे अतीत का स्मरण है; ऊंचाइयां, हमारे भविष्य की आकांक्षाएं हैं। और शेष अब कल बात करेंगे!
मेरी बातों को इतने प्रेम और शांति से सुना, उससे मैं बहुत अनुगृहीत हूं। और अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं। मेरे प्रणाम स्वीकार करें।
अहिंसा (प्रश्नोत्तर)
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