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हिंसा हमारी उपलब्धि है। हमने उसे खोजा है, हमने उसे निर्मित किया है। अहिंसा हमारी उपलब्धि नहीं हो सकती। सिर्फ हिंसा न हो जाये तो जो शेष बचेगा वह अहिंसा होगी।
इसलिए साधना नकारात्मक है। वह जो हमने पा लिया है और जो पाने योग्य नहीं है, उसे खो देना है। जैसे कोई आदमी स्वभाव से हिंसक नहीं है, हो नहीं सकता। क्योंकि कोई भी दुख को चाह नहीं सकता और हिंसा सिवाय दुख के कहीं भी नहीं ले जाती। हिंसा एक्सीडेंट है, सांयोगिक है। वह हमारे जीवन की धारा नहीं है। इसलिए जो हिंसक है वह भी चौबीस घंटे हिंसक नहीं हो सकता। अहिंसक चौबीस घंटे अहिंसक हो सकता है। हिंसक चौबीस घंटे हिंसक नहीं हो सकता। उसे भी किसी वर्तुल के भीतर अहिंसक ही होना पड़ता है। असल में, अगर वह हिंसा भी करता है तो किन्हीं के साथ अहिंसक हो सके, इसीलिए करता है। कोई आदमी चौबीस घंटे चोर नहीं हो सकता। और अगर कोई चोरी भी करता है तो इसीलिए कि कुछ समय वह बिना चोरी के हो सके। चोर का लक्ष्य भी अचोरी है, और हिंसक का लक्ष्य भी अहिंसा है। और इसीलिए ये सारे शब्द नकारात्मक हैं।
धर्म की भाषा में दो शब्द विधायक हैं, बाकी सब शब्द नकारात्मक हैं। उन दोनों को मैंने चर्चा से छोड़ दिया है। एक 'सत्य' शब्द विधायक है, पॉजिटिव है; और एक 'ब्रह्मचर्य' शब्द विधायक है, पॉजिटिव है।
यह भी प्राथमिक रूप से खयाल में ले लेना जरूरी है कि जो पांच शब्द मैंने चुने हैं, जिन्हें मैं पंच महाव्रत कह रहा हूं, वे नकारात्मक हैं। जब वे पांचों छूट जायेंगे तो जो भीतर उपलब्ध होगा वह होगा सत्य, और जो बाहर उपलब्ध होगा वह होगा ब्रह्मचर्य।
सत्य आत्मा बन जायेगी इन पांच के छूट जाने पर और ब्रह्मचर्य आचरण बन जायेगा इन पांच के छूटने पर। वे दो विधायक शब्द हैं। सत्य का अर्थ है, जिसे हम भीतर जानेंगे।
और ब्रह्मचर्य का अर्थ है, जिसे हम बाहर जीयेंगे। ब्रह्मचर्य का अर्थ है- ब्रह्म जैसी चर्या, ईश्वर जैसा आचरण। ईश्वर जैसा आचरण उसी का हो सकता है, जो ईश्वर जैसा हो जाये। सत्य का अर्थ है-ईश्वर जैसे हो जाना। सत्य का अर्थ है-ब्रह्म। और जो ईश्वर जैसा हो गया उसकी जो चर्या होगी, वह ब्रह्मचर्य होगी। वह ब्रह्म जैसा आचरण होगा। ये दो शब्द धर्म की भाषा में विधायक हैं, पॉजिटिव हैं; बाकी पूरे धर्म की भाषा नकारात्मक है। इन पांच दिनों में इन पांच नकार पर विचार करना है। आज पहले नकार पर-अहिंसा...।
अगर ठीक से समझें तो अहिंसा पर कोई विचार नहीं हो सकता है, सिर्फ हिंसा पर विचार हो सकता है और हिंसा के न होने पर विचार हो सकता है। ध्यान रहे अहिंसा का मत सिर्फ इतना ही है-हिंसा का न होना, हिंसा की एब्सेंस, अनुपस्थिति-हिंसा का अभाव। __इसे ऐसा समझें। अगर किसी चिकित्सक को पूछे कि स्वास्थ्य की परिभाषा क्या है? कैसे आप डेफिनिशन करते हैं स्वास्थ्य की? तो दुनिया में स्वास्थ्य के बहुत से विज्ञान विकसित हुए हैं, लेकिन कोई भी स्वास्थ्य की परिभाषा नहीं करता। अगर आप पूछे कि स्वास्थ्य की परिभाषा क्या है ? तो चिकित्सक कहेगा : जहां बीमारी न हो। लेकिन यह बीमारी की बात हुई, यह स्वास्थ्य की बात न हुई। यह बीमारी का न होना हुआ। बीमारी की परिभाषा
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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