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एक दिन मुंह फेर ले और न आये, तो बस एकदम हम नर्क में उतर जाते हैं। जिस आदमी की इतनी निर्भरता दूसरे पर हो, वह दूसरे के लिए जंजीरें बनायेगा-कहीं दूसरा फिर न जाये, मुड़ न जाये। वह दूसरे को बांधेगा। वह दूसरे के पैरों में बेड़ियां डालेगा; कभी पत्नी बनायेगा; कभी पति बनायेगा; कभी बेटा बनायेगा; कभी बाप बनायेगा; हजार तरह की बेड़ियों में दूसरे को कसेगा। और जब भी कोई दूसरे को बेड़ियों में कसेगा, तो हिंसा शुरू हो जायेगी। क्योंकि स्वतंत्र करती है अहिंसा; परतंत्र करती है हिंसा। हिंसा दूसरे को गुलाम बनाती है। __गुलामियां बहुत तरह की हैं। मीठी गुलामियां भी हैं, जो कि कड़वी गुलामियों से सदा बदतर होती हैं। क्योंकि कड़वी गुलामियों में एक ऑनेस्टी, एक सिंसियरिटी होती है, साफपन होता है! मीठी गुलामियां बड़ी खतरनाक होती हैं, शुगर कोटेड होती हैं; भीतर जहर ही होता है, ऊपर से शक्कर चढ़ी होती है। हम अपने सारे संबंधों में शक्कर चढ़ाए हुए हैं, भीतर तो जहर ही है। जरा सी पर्त हटती है और जहर बाहर निकल आता है। फिर लीप-पोत कर, पर्त को ठीक करके किसी तरह काम चलाते रहते हैं।
लेकिन हमारा यह दूसरे को खोजना एक बात का पक्का सबूत है कि हम अपने साथ होने के आनंद को नहीं पा रहे हैं। फिर हिंसा शुरू होगी। और तब हम दूसरे को खोजते हैं कि उसके बिना जी नहीं सकेंगे। जिसके बिना हम जी नहीं सकेंगे, उसे हम गुलाम बनायेंगे ही, उसे हम पजेस करेंगे ही, उसकी हम मालकियत करेंगे ही, हम उसके मालिक बनेंगे ही।
और जिसके भी हम मालिक बनेंगे, उसे हम मिटायेंगे, उसे हम नष्ट करेंगे। क्योंकि मालकियत किसी भी तरह की हो. सब तरह की मालकियत मिटाती है और नष्ट करती है। मालकियत बहुत सटल वायलेंस है, मालकियत बहुत सटल मर्डर है। मालकियत जो है, वह हत्या है किसी की, बहुत धीमे-धीमे। सिकंदर भी गुलाम बनाकर मारता है, हिटलर भी गुलाम बनाकर मारता है। धर्मगुरु भी किसी को गुलाम बनाकर मार डाल सकता है। सब तरह की गुलामियां हैं। __जब भी हम दूसरे को जकड़ लेते हैं, और उसकी गर्दन को पकड़ लेते हैं, और उस पर निर्भर हो जाते हैं, तभी हम उसकी गर्दन में पत्थर की तरह लटक जाते हैं। और यह लटकना नीचे की यात्रा है। इस यात्रा का कोई अंत नहीं है। यह फैलती जाएगी। एक से मन न भरेगा, दूसरा चाहिए, तीसरा चाहिए, हजार चाहिए। राजनीतिज्ञ को लाखों-करोड़ों चाहिए। जब तक वह राष्ट्रपति बन कर सारे मुल्क की गर्दन में न लटक जाये, तब तक उसको तृप्ति नहीं मिल सकती। सबकी गर्दन में लटक जाना चाहिए। सबके लिए वह पत्थर हो जाये बोझीला।
यह जो हमारा चित्त है, जो दूसरे को खोजता है, यह चित्त नीचे की तरफ जा रहा है। इसकी हिंसा बढ़ती चली जायेगी। यह अनेक रूप लेगा। इसके हजार चेहरे होंगे, हजार विधियां होंगी। लेकिन यह दूसरे को दबायेगा, सतायेगा, टार्चर करेगा।
टार्चर करने के बड़े अच्छे ढंग भी हो सकते हैं। बाप अपने बेटे को टार्चर कर सकता है, बेटा बाप को कर सकता है; मां अपने बेटे को कर सकती है, बेटा मां को कर सकता
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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