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________________ नौकर इकट्ठे किये तो मालूम हुआ कि वहां कई मालिक थे। तब बड़ी कठिनाई खड़ी हुई, सभी नौकर लड़ने लगे। सभी कहने लगे, मालिक मैं हूं! और जब बात बहुत बढ़ गई तब किसी एक बूढ़े नौकर ने कहा, क्षमा करें, हम व्यर्थ विवाद में पड़े हैं। मालिक घर के बाहर गया है और हम सब नौकर हैं। मालिक लौटा नहीं बहत दिन हो गए, और हम भूल गए। और अब कोई जरूरत भी नहीं रही याद रखने की, क्योंकि शायद वह कभी लौटेगा भी नहीं। __फिर मालिक एक दिन लौट आया। तो उस घर के पच्चीस मालिक तत्काल विदा हो गए–वे तत्काल नौकर हो गए। गुरजिएफ कहा करता था, यह आदमी के चित्त की कहानी है। जब तक भीतर की आत्मा जागती नहीं, तब तक चित्त का एक-एक टुकड़ा, एक-एक नौकर कहता है, मैं हूं मालिक। जब क्रोध करनेवाला टुकड़ा सामने होता है, तो वह कहता है, मैं हूं मालिक। और वह मालिक बन जाता है कुछ देर के लिए और पूरा शरीर उसके पीछे चलता है। शरीर को कुछ पता नहीं है। वह मालिक के पीछे चलता है। फिर पश्चात्ताप करने वाला आ जाता है और वह कहता है, मैं हूं मालिक। और तब शरीर रोता है। वही शरीर जिसने तलवार उठा ली थी, वही आंसू बहाता है। उसको कुछ भी पता नहीं, वह किसी भी मालिक का अनुगमन करता है। जो भी जोर से कहता है, आई एम द मास्टर-शरीर तत्काल उसके पीछे खड़ा हो जाता है। वही मन कहता है, ब्रह्मचर्य, तो शरीर कहता है, बड़ी पवित्र बात है, तैयार हं। दूसरा खंड कहता है, भोग, तो मन कहता है, बिलकल राजी हं। मैं तो मालिक के पीछे चलता हूं। ___ पोली-साइकिक है आदमी। साइकिक संरचना, उसकी जो मनस की संरचना है, वह कई खंडों की है। मन बहुत खंडों में बंटा है। और जब तक बंटा रहेगा, जब तक अखंड आत्मा बीच में जाग न जाये...हिंसा इन खंडों की आपस की लड़ाई है; इन नौकरों के सबके अपने दावों की, कि मैं मालिक हूं। ये अगर आमने-सामने पड़ जाते हैं तो मन बड़े द्वंद्व में पड़ जाता है। मन चौबीस घंटे लडता रहता है कि मालिक कौन है? और ये जो मन के लडते हुए खंड हैं, इनकी लड़ाई से जो द्वंद्व और जो पीड़ा और दुख पैदा होता है, वही आदमी दूसरों से भी लड़कर निपटाता रहता है। ___ यह बहुत मजे की बात है कि अक्सर हम अपनी लड़ाई को बाहर प्रोजेक्ट करते हैं, प्रक्षेप करते हैं। आपके भीतर एक चोर है। आप उस चोर से लड़ रहे हैं। आप उसको दबाए हुए हैं कि चोरी न करने देंगे। अगर आपके पड़ोस में चोरी हो जाये और चोर पकड़ लिया जाये, तो आप सबसे ज्यादा उस चोर की पिटाई करेंगे। क्योंकि आप अपने भीतर एक चोर को दबाए हुए हैं, जिसकी पिटाई आपने बहुत बार करनी चाही है, लेकिन कर नहीं पाये हैं। अब, जब एक चोर बाहर मिल गया है, तो आपके भीतर का चोर प्रोजेक्ट हो जायेगा और आप उसकी पिटाई करेंगे। ___चोर की पिटाई के लिए चोर जरूरी है। कोई साधु चोर की पिटाई नहीं कर सकता है; क्योंकि प्रोजेक्शन का उपाय नहीं। इसलिए जितने चोर हैं, वे चोरों के खिलाफ दिन-रात अहिंसा (प्रश्नोत्तर) 123 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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