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तत्व है। वैसा कहनेवाले रसायनविद भी आज मौजूद हैं, जो कहते हैं कि अब आदमी को अहिंसा की शिक्षा देने की कोई जरूरत नहीं। हम कुछ ग्रंथियों को काटकर अलग कर देते हैं, फिर आदमी हिंसा करने में असमर्थ हो जायेगा। वे ठीक कहते हैं थोड़ी दूर तक; लेकिन वे जो सुझाव दे रहे हैं, वे हिंसा करने से भी खतरनाक सुझाव हैं। यह संभव है कि हम आदमियों की कुछ ग्रंथियों को काट दें!
हमने देखा है एक बैल को भी और एक सांड़ को भी। बैल और सांड़ में सिर्फ एक ग्रंथि के कट जाने के फर्क के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। लेकिन कहां बैल की दीनता और कहां सांड़ का गौरव! बैल की आत्मा विकसित नहीं हुई, सिर्फ शरीर दीन हो गया है।
आदमी के शरीर से भी आज नहीं कल वैज्ञानिक उन ग्रंथियों को अलग करने का सुझाव देगा-दे रहा है–दिया जा चुका है; और कोई आश्चर्य नहीं है कि चीन और रूस की तानाशाही सरकारें उस सुझाव पर बहुत जल्दी अमल भी शुरू कर दें! ___आदमी के शरीर से भी कुछ ग्रंथियां काटी जा सकती हैं, तब वह हिंसा प्रकट नहीं कर सकेगा लेकिन अहिंसक नहीं हो जायेगा। ये दोनों अलग बातें हैं। तब वह शरीर से सिर्फ दीन हो जायेगा। वह वैसा ही होगा, जैसे एक बूढ़ा आदमी कामवासना से तो पीड़ित होता है, लेकिन काम की दुनिया में प्रवेश करने में असमर्थ हो जाता है।
नहीं, वह आदमी का विकास नहीं होगा। और वैसा आदमी जिस दिन हम पैदा कर लेंगे. वैसा आदमी विद्रोह नहीं करेगा. बगावत नहीं करेगा। गलामी उसकी आत्मा बन जायेगी। वह नान रिबेलियस हो जाएगा। सरकारें जरूर चाहेंगी कि आदमी को रासायनिक ढंग से गैर-हिंसक बनाया जा सके। बनाया जा सकता है; लेकिन उससे आदमी पशु से भी नीचे गिर जायेगा, आदमी से ऊपर नहीं जा सकता है। ___इसलिए यह भी मैं आपसे कहना चाहूंगा इस संदर्भ में, कि आदमी को बहुत जल्दी सारी दुनिया में इसके खिलाफ भी आवाज उठानी पड़ेगी-कि जीव रसायनविद जो सुझाव दे रहे हैं, वे मनुष्य की आत्मा के बहुत विपरीत और खतरनाक हैं। उन सुझावों से ज्यादा बड़ी गुलामी न तो कभी आई थी न कभी आ सकती है।
एक बड़ी केमिकल-रिवोल्यूशन, एक रासायनिक-क्रांति निकट है। उसके प्राथमिक चरण पर काम होना शुरू हो गया है। मैं कहूंगा कि निश्चित ही हिंसा के लिए शरीर में कुछ तत्व जरूरी हैं। लेकिन उन तत्वों के अलग होने से आदमी की आत्मा अहिंसक नहीं होती, सिर्फ इंपोटेंटली वायलेंट रह जाती है; सिर्फ नपुंसक रूप से हिंसक रह जाती है। हिंसा तो भीतर घुमड़ेगी; आत्मा में डिसीज़ होगी; आत्मा संगीतरहित होगी, लेकिन उस संगीतरहितता को दूसरे तक पहुंचाने के लिए शरीर असमर्थ हो जायेगा। तब दूसरे तक पहुंचने की असमर्थता हो जायेगी। हम यह बल्ब तोड़ दे सकते हैं, लेकिन बल्ब के तोड़ने से उसमें बहनेवाली बिजली नहीं टूट जाती, लेकिन दिखाई पड़नी बंद हो जाती है। बल्ब से बिजली प्रकट होती है, पर बल्ब बिजली नहीं है। ग्रंथियों से शरीर की हिंसा प्रकट होती है, पर ग्रंथियां हिंसा नहीं हैं।
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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