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निकलता है और दीवाल से नहीं निकलता। क्योंकि आंख होने का मतलब यह है कि वह बताती है कि दीवाल से सिर फूट जायेगा और दरवाजे से रास्ता है। दीवाल से रास्ता नहीं है।
जो विवेक से जीता है वह गलत को नहीं करता, और गलत नहीं करने की कसम भी कभी नहीं खाता। और जो आदमी गलत को न करने की कसम खाता हो तो जान लेना कि उसे विवेक का अभी कोई पता नहीं चला, वह अंधा आदमी है। व्रत सिर्फ अंधे लेते हैं। आंख वाले लोग व्रत नहीं लेते। आंख वाले लोग जिस ढंग से जीते हैं, वह व्रत है ! व्रत लिया नहीं जाता। लेकिन हम सब मंदिरों में व्रत ले रहे हैं। हम कसमें खा रहे हैं कि मैं एक साल ऐसा करूंगा, ऐसा नहीं करूंगा। ऐसा खाऊंगा ऐसा नहीं खाऊंगा, ऐसा नहीं पीऊंगा। इसका मतलब यह है कि आपका चित्त तो पीना चाहता है, आपका चित्त तो खाना चाहता है, उस चित्त को रोकने के लिए आप उल्टी कसम खा रहे हैं। मंदिर में खा रहे हैं जिसमें कि भगवान का थोड़ा डर रहे। लोगों के सामने खा रहे हैं कि लोग जरा देखते रहें कि तुमने कहा था सिगरेट नहीं पीऊंगा, अब तुम पी रहे हो । साधु के सामने कसम खा रहे हैं तो जरा भय रहे कि साधु को वचन दिया है तो पूरा करें। लेकिन एक बात पक्की है कि सिगरेट पीने की इच्छा भीतर मौजूद है। वह आदमी होश में नहीं है, इसलिए वह कसम खा रहा है।
कसम किसके खिलाफ खाई जाती है? अपने खिलाफ ! और अपने खिलाफ खाई गयी कसमों को पालना बहुत मुश्किल है। और अगर पाल भी ली जायें तो भी उससे कोई हित नहीं है। सिर्फ डैडनिंग, सिर्फ व्यक्तित्व की संवेदना क्षीण होती है और कुछ भी नहीं होता ।
नहीं, महावीर जब कहते हैं, 'विवेक से चलो', तो उसका मतलब है चलने की क्रिया होशपूर्वक हो, अप्रमादी हो । प्रमाद में न हो, मूर्च्छित न हो। पैर उठे तो जानो कि उठा। जमीन पर गिरे तो जानो कि गिरा । सिर घूमे तो जानो कि घूमा। बैठ रहे हो तो जानो कि बैठ रहे हो । कोई भी क्रिया बेहोशी में न हो जाये ।
इसलिए महावीर से जब किसी ने पूछा कि आप साधु किसको कहते हैं ? तो महावीर ने यह नहीं कहा कि जो मुंह पर पट्टी बांधता हो उसको मैं साधु कहता हूं। अगर महावीर ऐसा कहते तो दो कौड़ी के आदमी हो जाते ! मुंह-पट्टी की जितनी कीमत है उतनी ही कीमत होती ! महावीर ने ऐसा नहीं कहा कि जो नंगा रहता है उसे मैं साधु कहता हूं। अगर वह ऐसा कहते तो बड़े नासमझ सिद्ध होते और जो जानने वाले थे, वह अनादि अनंत समय तक उन पर हंसते। नहीं, महावीर ने जो जवाब दिया बहुत अदभुत था। महावीर ने कहा, जो जागा हुआ है उसे मैं साधु कहता हूं, 'असुत्ता मुनि ।' जो सोया हुआ नहीं है, उसे मैं मुनि कहता हूं। बड़ी अदभुत परिभाषा महावीर ने दी - जो सोया हुआ नहीं, असुत्ता मुनि, नहीं सोया है जो, उसे मैं साधु कहता हूं। पूछने वालों ने पूछा कि आप असाधु किसे कहते हैं? महावीर को कहना चाहिए था कि जो शराब पीता है। लेकिन ऐसा लगता है, महावीर का शराबखानों से कोई संबंध नहीं था। जिनका शराबखानों से संबंध होता है, वह यही समझाये चले जाते हैं कि जो शराब नहीं पीता, मांस नहीं खाता। महावीर का दिखता है किसी बूचरखाने से कोई संबंध नहीं था । जिनका होता है वह यही समझाये चले जाते हैं कि जो मांस नहीं खाता है वह साधु,
ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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