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________________ जानता हुआ ही सोया रहता हूं। जहां हाथ रखा था वहीं हाथ रहता है, जब तक मैं न हटाऊं। हाथ अपने से हट जाये तो मेरी मालकियत गयी। फिर मैं मालिक नहीं रहा। तो आनंद ने कहा, क्या आप रात में भी जागे हुए सोते हैं? बुद्ध ने कहा, निश्चित ही। क्योंकि मैं दिन में जागा हुआ जागता हूं इसलिए रात में जागे हुए सोने का अधिकारी हो गया हूं। जब तक आप दिन में सोये हुए जागेंगे तब तक तो संभावना नहीं है कि आप जागे हुए सो सकें। जब जागने में सोये रहते हैं तो सोने में तो सोये ही रहेंगे। ____जागने में जागना शुरू करना पड़ेगा, वहीं से प्रमाद तोड़ें। महावीर अपने भिक्षुओं को निरंतर कहते थे, विवेक से उठो, विवेक से चलो, विवेक से बैठो। इसका मतलब क्या था? शायद उनके अनेक साधु यही समझते हैं कि...। विवेक से उठने का मतलब, विवेक से बैठने का मतलब जो महावीर के साधुओं ने समझा है, वह महावीर का खयाल नहीं है। महावीर के साधु समझते हैं, 'विवेक से चलो'- इसका मतलब है कि किसी के बिछाये हुए बिस्तर पर पैर मत रखना, किसी के बिछाये हुए गलीचे पर मत चलना, सूखी जमीन में चलना, गीली जमीन में मत चलना। 'विवेक से खाओ', तो साधु महावीर का हजारों साल से समझ रहा है कि यह खाना और यह मत खाना। विवेक का मतलब लोगों ने समझा है, डिस्क्रिमिनेशन। विवेक का यह मतलब नहीं है महावीर का। ___ महावीर का विवेक से मतलब है, होश। महावीर का विवेक से मतलब है, अवेयरनेस, डिस्क्रिमिनेशन नहीं। क्योंकि जहां अवेयरनेस है वहां तो डिस्क्रिमिनेशन अपने आप आ जाता है छाया की तरह। लेकिन जहां डिस्क्रिमिनेशन है वहां अवेयरनेस का आना कोई जरूरी नहीं है। महावीर कहते हैं, विवेक से चलो। उसका मतलब है, जानते हुए चलो, होश से चलो कि तुम चल रहे हो। अब इस होश में ये सब आ जायेगा। जो गलत है वह नहीं होगा, क्योंकि होशपूर्वक किसी ने कभी कोई गलत काम नहीं किया, कर नहीं सकता। होशपूर्वक जो भी किया जाता है वह सदा ठीक है। होशपूर्वक पुण्य ही किया जा सकता है, होशपूर्वक पाप नहीं किया जा सकता। __इसलिए महावीर जब कहते हैं, होशपूर्वक खाओ, तो उसका मतलब यह नहीं कि यह खाओ और यह मत खाओ। उसका मतलब है, होशपूर्वक खाओ। खाने की क्रिया होशपूर्वक हो। उसमें यह तो आ ही जाता है, क्या छोड़ो क्या न छोड़ो। वह छूट ही जायेगा। उसे छोड़ने के लिए अलग से व्यवस्था, अलग से नियम बनाने की जरूरत नहीं है। और जो आदमी अलग से नियम बनाता है, वह बता रहा है कि उसका होश अभी नहीं जगा। ____ मैं जाकर कसम खाता हूं मंदिर में कि मैं दरवाजे से ही निकलूंगा, कभी दीवाल से नहीं निकलूंगा। तो लोग कहेंगे, आप अंधे तो नहीं हैं? क्योंकि यह कसम सिर्फ अंधे ही खा सकते हैं। और ध्यान रहे, अंधा कितनी ही कसम खाये, कभी न कभी दीवाल से टकरायेगा ही। अंधे के बस के बाहर है कसम को पूरा करना। और आंख वाला आदमी कभी कसम नहीं खाता कि मैं दरवाजे से निकलूंगा दीवाल से न निकलूंगा। आंख वाला आदमी दरवाजे से अप्रमाद 107 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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