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________________ 106 है, वह पूर्ण प्रकाश है। प्रकाश ही प्रकाश है। लेकिन ऊपर जाने का रास्ता नीचे होकर है। द पीक इज़ टु बी अचीव्ड वाया द एबिस, वह जो नीचे खाई है उसके द्वारा चोटी पर पहुंचा जाता है। यही सबसे बड़ी साधना की कठिनाई है । यही समझना सबसे ज्यादा कठिन हो जाता है कि ऊपर जाने के लिए नीचे जाना पड़ेगा। हम सोचते हैं, सीधे ऊपर चले जायें। लेकिन सीधे हम ऊपर नहीं जा सकते। अगर हम सीधे ऊपर जायेंगे तो स्पेकुलेशन शुरू हो जायेगा। फिर हम ऊपर का दर्शन बना लेंगे। सुपरकांशस, कलेक्टिव- कांशस, कॉस्मिक-कांशस, इसके हम सिद्धांत बना सकते हैं । लेकिन यह सिद्धांत सिर्फ सिद्धांत होंगे वैचारिक । जो सीधा ऊपर जायेगा वह फिलॉसफी में चला जायेगा । दर्शन में चला जायेगा। धर्म में नहीं जा सकेगा। जिसे धर्म के अनुभव में जाना है उसे पहले नीचे उतरना पड़ेगा। यह बड़े मजे की बात है, जिसे संत होना हो उसे बहुत गहरे अर्थों में पापी होना पड़ता है । और जो व्यक्ति गहरे अर्थों में पापी होने से बच गया, वह गहरे अर्थों में संत नहीं हो सकता। यह लगती है बहुत अजीब-सी बात, लेकिन यह ऐसा ही है, यह तथ्य है। इसका कोई उपाय नहीं। इसलिए अक्सर ऐसा हो जाता है कि बड़े पापी एकदम से बड़े संत हो जाते हैं। और छोटे पापी छोटे ही पापी बने रहते हैं। क्योंकि जो भी जगत में ट्रांसफार्मेशन हैं, रूपांतरण हैं, वे सदा गहराइयों से आते हैं। नीचे उतरना जरूरी है ऊपर जाने के लिए। नीत्शे का एक वचन आपसे कहूं। नीत्शे ने कहा है कि जिस वृक्ष को आकाश छूना हो, उस वृक्ष को अपनी जड़ें पाताल तक पहुंचाने की हिम्मत जुटानी पड़ती है। बहुत घबड़ाने वाली बात है नीचे उतरना, क्योंकि वहां अंधकार है। जब आप चेतन से अचेतन में उतरेंगे तो बहुत अंधकार में उतर जायेंगे। लेकिन जितने अंधकार में उतरने की आप हिम्मत जुटाते हैं, उतने प्रकाश के अधिकारी और पात्र हो जाते हैं। पात्रता आती है अंधेरे में उतरने से। साहस आता है अंधेरे में उतरने से। योग्यता आती है अंधेरे में उतरने से। इसलिए ऊपर की फिक्र छोड़ दें, नीचे की फिक्र करें और एक-एक कदम पर प्रमाद को तोड़ते चले जायें। कहां से शुरू करेंगे ? शुरू सदा वहीं से करना पड़ता है, जहां आप हैं । आप जिस मंजिल में हैं उस मंजिल का नाम चेतन है । उस चेतन मंजिल की क्रियाओं को आप प्रमाद छोड़कर करना शुरू कर दें । बुद्ध के पास आनंद वर्षों तक रहा। एक दिन उसने पूछा कि बड़ी मुसीबत मालूम पड़ती है। कभी-कभी रात को मुझे नींद नहीं आती तो मैं आपको देखता रहता हूं। आप जिस करवट सोते हैं उसी करवट सोये रहते हैं, हाथ भी नहीं हिलाते, पैर भी नहीं बदलते। जिस आसन में, जिस अवस्था में सांझ सिर रखते हैं वैसा ही रात भर रखे रहते हैं। हैरानी होती है। मुझे तो बहुत करवट बदलनी पड़ती है। मुझे तो बहुत हाथ-पैर हिलाने पड़ते हैं । बुद्ध ने कहा, तुझे पता रहता है कि तू हाथ-पैर हिला रहा है, करवट बदल रहा है? आनंद ने कहा, कुछ पता नहीं रहता। सुबह पता चलता है कि जैसा सोया था वैसा नहीं सोया हूं। सिर कहीं था कहीं पहुंच गया। नींद में कैसे पता चल सकता है ? बुद्ध ने कहा, मैं जानता हुआ सोता हूं, मैं ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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